________________ 326 आप्तवाणी-७ के अहम् को पोषण मिला और अपना छुटकारा हो गया न!! नहीं तो फिर भी, रुपये क्या ठेठ तक साथ में आएँगे? इसके बजाय यहाँ पर यों ही ठगे जाकर लोगों को ले लेने दो न! नहीं तो बाद में लोग वारिस बनेंगे, तो अभी ठगे जाने दो न! और वह जो ठगने आया है, उसे कहीं अपने से मना किया जाएगा? जो ठगने आया है, उसका मुँह क्यों दबाए? ...परिणामस्वरूप विज्ञान प्रकट हुआ हम तो खटमल को भी खून पीने देते हैं कि यहाँ आया है तो अब खून पीकर जा। क्योंकि मेरी होटल ऐसी है कि इस होटल में किसी को दु:ख नहीं देना है। यही मेरा काम। यानी खटमल को भी भोजन करवाया है। अब भोजन नहीं करवाएँ तो उसके लिए सरकार क्या हमें कोई दंड देगी? नहीं। हमें तो आत्मा प्राप्त करना था। हमेशा चौविहार, हमेशा कंदमूल त्याग, हमेशा गरम पानी, यह सब करने में कुछ भी बाकी नहीं रखा था! और देखो तभी तो प्रकट हुआ। पूरा 'अक्रम विज्ञान' प्रकट हुआ। जो पूरी दुनिया को स्वच्छ कर दे ऐसा विज्ञान प्रकट हुआ है! ___...लेकिन इसमें हेतु मोक्ष का ही प्रश्नकर्ता : आप तो जान-बूझकर ठगे गए, लेकिन वह धोती के पैसे अधिक ले गया, उससे उसकी क्या दशा होगी? उसे लाभ है या नुकसान? दादाश्री : उसका जो होना हो, सो हो। उसने मेरे यह सिखाने से नहीं किया। हमने तो उसकी वृत्ति को पोषण दिया है। हक़ का खाने आया तो ठीक और अणहक्क (बिना हक़) का खाने आया फिर भी हमने उसे थप्पड़ नहीं मारा। ले, खा भाई! और उसका उसे तो नुकसान ही होगा न! उसने तो अणहक्क का लिया इसलिए उसे नुकसान होगा, लेकिन हमारा मोक्ष खुल गया न! 'सर्व नो अहम् पोषी वीतराग चाली जाय।' ऐसे अहम्