________________ [21] कला, जान-बूझकर ठगे जाने की ..वहाँ पर ज्ञानी जान-बूझकर ठगे जाते हैं लोग बुद्धि का दुरुपयोग करते होंगे या नहीं करते? सभी दुकानदारों ने यही धंधा लगाया है न! ऐसे, हमारे जैसे कुछ लेने जाते हैं तो 'आओ साहब, आओ साहब' करके दो-तीन रुपये अधिक ले लेते हैं, और हम दे भी देते हैं। हम समझ जाते हैं कि ये लालची हैं। एक बार एक दुकान में गए हों, तो हम वहाँ से जो खरीदने गए हों वह खरीदे बगैर नहीं निकलते। नहीं तो 'आओ साहब, आओ साहब' की उसकी मेहनत बेकार जाएगी। उसकी मेहनत बेकार जाए, हम ऐसा नहीं करते। भले ही, हम उसके वहाँ से ठगे जाए। हम समझते ज़रूर हैं कि यह क्वॉलिटी ऐसी है, हम तुरंत पहचान जाते हैं। अब तो हमें दुकानों से कुछ लेने का रहा ही नहीं न! दुकान पर जाना भी नहीं और लाना भी नहीं, कुछ रहा ही नहीं न! जो किसी भी जगह न ठगे जाएँ, वे ज्ञानी। कहाँ ठगे जाते हैं? जान-बूझकर! ज्ञानी समझते हैं कि यह भला आदमी है, यह बेचारा मुश्किल में है, तो इसे 'लेट गो' करो। ठगे गए, लेकिन कषाय नहीं हों इसलिए मेरे पार्टनर ने मुझसे एक बार कहा कि, 'लोग आपके भोलेपन का लाभ उठा जाते हैं।' तब मैंने कहा कि, 'अगर आप मुझे भोला कह रहे हो, तो आप ही भोले हो। मैं जान-बूझकर ठगा जाता