________________ नियम से अनीति (20) 319 प्रश्नकर्ता : अब पाँच सौ रुपये की रिश्वत लेने की छूट दी, उसके बाद जैसे-जैसे ज़रूरत बढ़ती जाए तो फिर वह रकम भी अधिक ले तो? दादाश्री : नहीं। वह तो एक ही नियम। पाँच सौ यानी पाँच सौ ही, फिर उस नियम में ही रहना पड़ेगा। एक शराब नहीं पीने का अहंकार करता है और एक शराब पीने का अहंकार करता है, तो मोक्ष किसका होगा? भगवान दोनों को ही निकाल देंगे! वे तो क्या कहते हैं कि, 'हमारे यहाँ तो निअहंकारी की ज़रूरत है।' भगवान तो क्या कहते हैं कि, 'नीति का पालन तो तुझे इसलिए करना है कि संसार में सुख मिले। वर्ना, हमें नीति-अनीति का कोई झंझट ही नहीं है। तुझ से दु:ख सहन हो सके तो अनीति करना।' अनीति से दु:ख ही आता है न? किसी को दु:ख देने के बाद हम पर भी दु:ख पड़ेगा। यह तो, तुझे सुख मिले इसलिए नीति करनी है। प्रश्नकर्ता : लेकिन अनीति करेगा तो उसे आदत पड़ जाएगी न? दादाश्री : आदत पड़ जाएगी, ऐसा? नहीं। इसलिए कहा है न, कि अनीति करो लेकिन नियमपूर्वक करो। कोई भी चीज़ नियमपूर्वक की जाए और वह भी 'ज्ञानीपुरुष' की आज्ञापूर्वक हो, तब तो वह काम निकाल देगी। प्रश्नकर्ता : उसे अनीति की आदत पड़ जाए, फिर तो वह नियम में नहीं रह पाएगा न? दादाश्री : तो फिर उसका अर्थ ही नहीं न! और हमारी ज़िम्मेदारी भी नहीं रहेगी न! यह तो क्या कहा है कि तुझे पाँच सौ रुपये की कमी है तो तुझे रिश्वत के पाँच सौ रुपये ले लेने हैं। फिर कोई पाँच हज़ार रुपये दे फिर भी तुझे पाँच सौ से ज्यादा रकम नहीं लेनी है। इस तरह जो नियम में ही रहे, उसकी