________________ नियम से अनीति (20) 317 देंगे कि, 'चल जा, तेरा चेहरा खराब दिख रहा है, इसके बजाय वह जो रिश्वत के पाँच सौ रुपये लेता है, उसका चेहरा अच्छा दिख रहा है।' इसका मतलब ऐसा नहीं है कि हम रिश्वत लेने को कह रहे हैं। लेकिन यदि तुझे अनीति करनी ही है तो तू नियम से करना। नियम रख कि 'भाई, मुझे रिश्वत के पाँच सौ रुपये ही लेने हैं। पाँच सौ रुपये से ज़्यादा कुछ भी देगा, अरे पाँच हज़ार रुपये देगा, फिर भी सभी वापस कर देने हैं। जितने मुझे घरखर्च में कम पड़ते हैं उतने, पाँच सौ रुपये ही रिश्वत में लेने हैं।' बाकी, ऐसी जोखिमदारी तो सिर्फ हम ही लेते हैं। क्योंकि ऐसे काल में लोग रिश्वत नहीं लेंगे, तो क्या करेंगे बेचारे? तेल, घी के भाव कितने बढ़ गए हैं, चीनी के भाव कितने ज़्यादा हैं! तो क्या बच्चे की फीस के पैसे दिए बगैर चलेगा? देखो न, तेल के भाव सत्रह रुपये जितना कहते हैं न? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : व्यापारी काला बाज़ार करते हैं तो उनका चलेगा जबकि नौकरों का बचाव करनेवाला कोई रहा ही नहीं? इसलिए हम तो कहते हैं कि रिश्वत भी नियमपूर्वक लेना, तो वह नियम तुझे मोक्ष में ले जाएगा। रिश्वत बाधक नहीं है, अनियम बाधक to प्रश्नकर्ता : लेकिन अनीति करना तो गलत ही कहलाएगा दादाश्री : वैसे तो इसे गलत ही कहते हैं न! लेकिन भगवान के घर पर अलग ही प्रकार की परिभाषा है। भगवान के वहाँ पर अनीति या नीति को लेकर कोई झगड़ा है ही नहीं। वहाँ पर तो अहंकार पर आपत्ति है। नीति पालनेवाले को अहंकार बहुत होता है, उसे तो बिना दारू के ही नशा चढ़ा रहता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन हमेशा ऐसा ही नहीं होता न?