________________ नियम से अनीति (20) 315 की ज़रूरत नहीं है।' तब कहते हैं, 'तब तो हमें ठीक से फायदा नहीं होता है।' तब मैंने कहा कि, 'ज़रा भाव ज़्यादा रखो।' तब वे कहते हैं कि, 'ग्राहक दूसरी जगह पर चला जाता है, इसलिए अधिक भाव लेना हो तो लिया नहीं जा सकता न!' हम इसे अनीति कहते हैं। अब काला बाज़ार करना है, लेकिन जितनी कमी पड़ रही हो, दिन में उतना ही दस-पंद्रह रुपये ज़्यादा ले ले। दूसरे पच्चीस अधिक आएँ फिर भी नहीं ले तो वह अनीति की, लेकिन नियम से की, ऐसा कहा जाएगा। इसीलिए कहा है न कि अनीति करनी पड़े फिर भी नियम से करना। प्रश्नकर्ता : तो इसका ऐसा अर्थ हुआ कि तू पैसा अधिक ले, लेकिन माल कम मत देना? दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं कह रहा हूँ। हमने तो ऐसा कहा है कि अनीति कर लेकिन नियम से करना। एक नियम रख कि भाई, मुझे इतनी ही अनीति करनी है, इससे अधिक नहीं। दुकान से रोज़ दस रुपये अधिक लेने हैं, उससे अधिक अगर पाँच सौ रुपये भी आएँ, तो भी मुझे नहीं लेने। ऐसा मानो न, कोई एक इन्कम टैक्स ऑफिसर हो, उसकी वाइफ रोज़ लडती रहती हो कि, 'इन सभी ने रिश्वत ले लेकर बंगले बनवाए हैं और आप रिश्वत नहीं लेते हो। आप ऐसे के ऐसे ही रहे।' तो कई बार तो बच्चे के स्कूल की फीस भी उधार पर लानी पड़ती है। उसके मन में इच्छा कि दो सौ-तीन सौ रुपये कम हैं, उतने मिल जाएँ तो मुझे शांति रहेगी। लेकिन ऐसे रिश्वत नहीं ले पाता तो फिर क्या हो? और वह भी मन में चुभता है न! तो हम उसे कहते हैं कि, 'रिश्वत लेनी हो तो तू नक्की करना कि मुझे महीने में पाँच सौ रुपये से अधिक नहीं लेनी है। फिर दस हज़ार रुपये आएँ तो भी मुझे नहीं चाहिए।' तुझे महीने में जितने कम पड़ते हैं उतने तू लेने का नक्की कर।