________________ 314 आप्तवाणी-७ मनुष्य नियम में रहकर अनीति करता है उसे मैं नीति कहता हूँ। भगवान के प्रतिनिधि के रूप में, वीतराग के प्रतिनिधि के रूप में मैं कहता हूँ कि अनीति भी नियम में रहकर कर। वह नियम ही तुझे मोक्ष में ले जाएगा। अनीति करे या नीति करे उससे मुझे शिकायत नहीं है, लेकिन नियम में रहकर कर। पूरे जगत् ने जहाँ पर तेल निकाल दिया है, वहाँ पर हमने कहा है कि इसमें आपत्ति नहीं है, तू तेरे नियम में रहकर कर। अब अभी कलियुग है, तो कहेंगे कि, 'साहब, मुझसे यह नहीं हो पाता, नीति पालन नहीं कर पाता।' तब मैं कहता हूँ कि, 'तो नियमपूर्वक पालन कर, दिन में दो या तीन बार नीति का पालन कर और बाकी अनीति कर। तू पक्का कर कि मुझे रोज़ दो या तीन नीतियों का पालन करना है। जा, तेरे मोक्ष की गारन्टी हम लिखकर देते हैं।' हाँ, भला नीति का पालन नहीं किया जा सके तब क्या अनीति का ही पालन करते रहें? नहीं। वह तो बिल्कुल उल्टा चला। इसलिए कहा है कि अनीति का पालन भी यदि तू नियम से करेगा तो मोक्ष में जाएगा। पूरा जगत् कहता है कि, 'नीति का पालन करेगा तो मोक्ष में जाएगा।' जबकि मैं कहता हूँ कि, 'अनीति का पालन भी यदि तू नियम से करेगा तो मोक्ष में जाएगा।' अब ऐसी विचित्र बात कोई करेगा? प्रश्नकर्ता : दादा, नियम में रहकर अनीति का पालन किस तरह करें? उसका उदाहरण देकर समझाइए न! दादाश्री : हाँ, वह आपको समझाता हूँ। एक सेठ की कपड़े की दुकान थी, वह कपड़ा ऐसे खींच-खींचकर देते थे। तब मैंने कहा कि, 'ऐसा क्यों करते हो?' तब कहते है कि, 'चालीस मीटर में से इतना बचता है।' तब मैंने कहा कि, 'फिर इसका दंड क्या मिलेगा, वह जानते हो? अधोगति में जाना पड़ेगा! चालीस मीटर का भाव लिया तो हमें चालीस मीटर दे देना चाहिए, उसमें खींचने