________________ स्व-रमणता : पर-रमणता 479 तब तक खुद बाहरी खिलौनों से खेलता है, वर्ना चित्त भटकता रहता है, जब तक वह खिलौनों से खेलता है तब तक तो चित्त स्थिर रहता है! खिलौने किसे कहते हैं? जिनके खो जाने से द्वेष होता है और मिलने से राग होता है ! सामने एक बार 'ज्ञानीपुरुष' से भेंट हो गई और तार जुड़ गया, आत्मा प्राप्त हो गया, 'स्वरूप की रमणता' में आ गया, तो उसके बाद राग-द्वेष मिटें कि हो गया वीतराग! वर्ना तब तक सिर्फ प्रकृति में ही रमणता है। प्रकृति का पारायण पूरा हुआ तो हो गया वीतराग! जय सच्चिदानंद