________________ 474 आप्तवाणी-२ पौद्गलिक रमणता यदि कभी किंचित् मात्र भी रहे, तब तक आत्मा प्राप्त नहीं होगा। आत्मा का आभास होता हैं, लेकिन तथारूप नहीं हो पाता। तथारूप मतलब भगवान ने जैसा आत्मा बताया है, वैसा नहीं हो पाता। तथारूप आत्मा, वह तो अचल आत्मा है ! ये सब चंचल आत्मा हैं ! जब तक पौद्गलिक रमणता है, तब तक चंचल आत्मा है। भगवान ने कहा है कि दो प्रकार की रमणता होती है। एक शुद्ध चेतन की रमणता, वह परमात्म रमणता कहलाती है, वर्ना फिर दूसरी पुद्गल की रमणता है, वह खिलौनों की रमणता कहलाती है, खिलौने खेलते हैं ऐसा कहा जाएगा। सारी-खिलौनों की ही रमणता हाँ, बालक भी खिलौनों से ही खेलते हैं न? दो साल के बालक के खिलौने पाँच साल के बालक को दें, तो वह लेगा क्या? नहीं लेगा। वह तो कहेगा, 'ये तो छोटे बच्चों के हैं, मेरे नहीं हैं!' यानी छोटे बच्चे के खिलौने बड़ा बच्चा काम में नहीं लेता और बड़े के खिलौने से छोटा नहीं खेलता। फिर पाँच साल के बच्चे के खिलौने हों, तो वे बड़ा ग्यारह साल का बच्चा नहीं लेगा, कहेगा, 'हम तो क्रिकेट खेलने जाएँगे' फिर वह चौदह साल का होता है, तब तक क्रिकेट और फुटबॉल और वॉलीबॉल और फलाना बॉल, वगैरह सभी खिलौने खेलता रहता है। फिर अठारह साल का हो जाए, तब पढ़ते-पढ़ते किताबों से खेलता है। किताबें भी खिलौने ही कहलाती हैं। जिन किताबों पर रुचि है, वे क्या कहलाती हैं? जहाँ रुचि है वहाँ रमणता कहलाती है। इसलिए किताबें खिलौने, फुटबॉल खिलौना है, गुड्डे-गुड्डियाँ ये सभी खिलौने ही हैं! फिर बीस-बाईस साल का हो जाए तब कहेगा कि, 'अब मुझे गुड़िया नहीं चलेगी, मुझे बड़ी जीवित गुड़िया चाहिए।' 'अरे पागल, यह गुड़िया क्या बुरी है? लाने दे न तेरे लिए, यहाँ से जापानी गुड़िया मिलती हैं वे, बड़ी, साड़ी पहनी हुई आती हैं वे?' तो वह कहेगा, 'नहीं, मुझे जीवित चाहिए।' फिर वह जीवित गुड़िया ले आता है! अब हम उसे कहें कि, 'अब तो संतोष हो गया न? खिलौने अब बंद करेगा?' तो वह कहेगा कि, 'अब मुझे हर्ज नहीं है।' उसके बाद उत्साहपूर्वक दो-चार साल बीत जाएँ, तब लोग पूछते हैं कि, 'भाई चार