________________ स्व-रमणता : पर-रमणता जिसने लाचार होकर शादी की है उसके लिए वीतरागों का ज्ञान है और राजीखुशी से सहमति देकर तीन-तीन हस्ताक्षर करके विवाह कर लिया, वह वीतरागों का ज्ञान कैसे पाएगा? लाचार होकर जिसने शादी की है, लाचार होकर जो खाता है, लाचार होकर जो पीता है उसके लिए वीतरागों का ज्ञान है ! लाचारी'-यह एक पद है, स्टेज है, पसंद है ही नहीं फिर भी करना पड़ता है। आपको एकाध चीज़ पसंद तो होगी न? ऐसी आपको खबर होगी न? प्रश्नकर्ता : पसंद तो है, लेकिन यही है, मैं ऐसा बिल्कुल पक्का नहीं बता सकता। दादाश्री : 'है' तो सही न? वह 'है' के आधार पर जीवित रहता है। यह जीवित किस आधार पर रहता है? 'है' के आधार पर और 'है' के आधार पर नहीं जीए तो आत्मा प्राप्त हो जाएगा! अभी आत्मा की रमणता 'है' उसमें है। यदि 'है'वाली रमणता नापसंद हो जाए तो उसे आत्मा प्राप्त होगा ही, वर्ना देह रहेगा ही नहीं! लेकिन जो 'है' उसी में रमणता है, तो उसे आत्मा कहते हैं, 'आपका ठीक है। आप अपने गाँव में ठीक हो और मैं मेरे गाँव में ठीक हँ!' किसी जगह पर रमणता बरतती रहती है, यह अन्य किसी जगह रमणता है, उसके आधार पर जीवित रहते हैं। यदि रमणता किसी भी जगह पर - एक परमाणु मात्र में, पुद्गल में पौद्गलिक रमणता नहीं हो तो उसे आत्मा प्राप्त होगा ही! हमें एक भी परमाणु पर पौद्गलिक रमणता नहीं है ! हम एक क्षण भी आत्म-रमणता के बिन नहीं रहे हैं! यह देह 'मेरी है' ऐसा हमें भान नहीं रहता है, पड़ोसी की तरह भान रहता है, यह देह नेबरर है, फर्स्ट नेबर है