________________ 472 आप्तवाणी-२ महावीर से पूछे तो कहेंगे, 'ये सब प्रमादी हैं, संपूर्ण प्रमादी हैं। अंशमात्र भी प्रमाद गया नहीं है।' प्रमाद क्या है? इस जगत् में कौन प्रमाद में है? पूरा जगत् ही प्रमाद में है। यह प्रमाद कब जाएगा? आरोपित भाव जाएगा, तब प्रमाद जाएगा। मद तो चढ़ा है और वापस यह प्रमाद। एक तो आरोपित भाव है, 'मैं चंदूलाल हूँ' ऐसा मानता है। वह मद है और विवाह में मौज मनाता है, वह प्रमाद है। कोई अवस्था अच्छी हो तो उसमें ठंडक भोगता है और खराब अवस्था में घुटन भुगतता है, वह प्रमाद है। यदि आरोपित भाव में स्थिरता करे (रखे) तो वह मद है और यदि आरोपित भाव में रंजन करे, तो उसे प्रमाद कहा है। अब ये लोग, अगर कोई जल्दी नहीं उठता, तो उसे प्रमाद कहते हैं, लेकिन उसे तो आलस्य कहते हैं। जल्दी नहीं उठना, वह तो आलसी व्यक्ति का विटामिन है। एक तो उठता देर से है और गाड़ी आए तब ऐन मौके पर ऐसा दौड़ता है! यानी यह आलसी व्यक्ति का विटामिन है। अब साधु प्रमाद का अर्थ उनकी अपनी भाषा में ले गए और भगवान ने कुछ और कहा है, भगवान की भाषा अपने काम की है। ज्ञानी की संज्ञा से चलना है, वह ध्रुवकांटा ठीक है, उनका ज्ञान सही उत्तर दिशा बताता है। बाकी तो सब उत्तर के बदले दक्षिण में ले जाते हैं, कांटा उत्तर दिखाता है और ले जाता है दक्षिण में। ज्ञानी के बारे में यथार्थ ही कहा गया है कि, 'मोक्ष मार्गनेत्तारंय भेत्तारं कर्मभुभृताम् ज्ञातारं सर्व तत्वानाम्, वंदे तद्गुण लब्धये।'