________________ निष्पक्षपाती मोक्षमार्ग 471 से पलंग पर बैठना है, पलंग चरमराए फिर भी बैठना है। भले ही चरमराए, वह तो पलंग है। क्या जीव है वह? कोई जीव दब गया हो तो हम खड़े हो जाएँगे, लेकिन पलंग भले ही चरमराए, बैठ जाएगा तो हम दूसरा ले आएँगे। लेकिन कहेंगे, 'नहीं, प्रमाद हो जाएगा। यानी बैठते हैं, तब भी चैन से नहीं बैठते, हड़बड़ाया हुआ ही रहता है! और आप कोई बात पूछने जाओ न तो वह हड़बड़ी में चिढ़ जाता है, वह 'हट, हट,' ऐसे करता है। ऐसे क्या शोभा देता है? भगवान ने ऐसा नहीं कहा है। वीतराग भगवान ऐसे होते होंगे? ये लोग घड़ीभर में कहीं से कहीं चले जाते हैं, क्या महावीर ऐसा चलाते होंगे? वे तो यो... आराम से, आराम करते-करते चलते थे, यह तो भीतर यदि आकुल-व्याकुल हो जाता है न, तो बाहर भी आकुलव्याकुल हो जाता है, भीतर हड़बड़ाहट हुई कि बाहर भी हड़बड़ी, फिर ये पेड़-वेड़ सभी उसे हिलते हुए दिखते हैं, नहीं हिल रहे हों, फिर भी हिलते हुए दिखते हैं, क्योंकि खुद हड़बड़ाया हुआ है! ये जो औलिया होते हैं उन्हें कोई हड़बड़ाहट नहीं रहती, चैन रहता है। हम कहें कि, 'अरे, आकाश क्या गिरनेवाला नहीं है?' तो कहेंगे कि, 'नहीं साहब, गिरनेवाला नहीं है। उसे तो खुदा ने बनाया है, कैसे गिरेगा?' और ये लोग तो 'मेरा ही किया हुआ और मुझे ही भोगना है।' यानी कि आकाश गिर गिया तो क्या हो जाएगा? यह सीधी समझ उल्टी हो गई और उसके फल कड़वे आए है, वर्ना ऐसा कहीं होता होगा? हड़बड़ीवाला व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करता है, फिर भी उसे कभी भी शुद्ध उपयोग नहीं रह पाता, 'शुद्ध उपयोग' दे दें फिर भी हड़बड़ीवाले के पास रह नहीं पाता, क्योंकि हड़बड़ी है न! आप ये खाते हो, पीते हो, घूमतेफिरते हो, लेकिन उपयोगपूर्वक करते हो। जबकि हड़बड़ीवाला ऐसा समझता है कि, 'इसमें तो शुद्ध उपयोग चला ही जाएगा।' नहीं, शुद्ध उपयोग तो रहेगा ही। चाय अच्छी है या बुरी है, कड़क है या मीठी है, उसमें अपना उपयोग शुद्ध ही रहता है। प्रमाद शब्द ने मार डाला है। इस प्रमाद शब्द को लोग समझे ही नहीं। इतनी हड़बड़ी करते हैं, चार बजे उठते हैं, फिर भी यदि कभी