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________________ 470 आप्तवाणी-२ ऐशोआरामवालों का मोक्षमार्ग है और दूसरा चालाक का मोक्षमार्ग, उन दोनों का रास्ता अलग है! ऐशोआरामवाला देर से निकलता है और फिर छोटा रास्ता ढूँढ निकालता है! सोते-सोते बहुत काम निकाल लेता है वह तो। इसलिए अपना यह लिफ्टमार्ग अलग ही प्रकार का है, वह सभी तरह से खिल उठा है। इसलिए कवि लिखते हैं न कि, 'ज्ञानी विक्रम टोच, ऐश्वर्य हाहाकार।' अक्रम ज्ञानी हैं और विक्रम शिखर पर बैठे हुए हैं और खलबली मचा दी है! भले ही ऐशोआराम किए होंगे, लेकिन मार्ग भी ऐशोआरामवाला मिला है न! वहाँ पर 'प्रमाद मत करो, प्रमाद मत करो' कहें तो क्या दशा होगी? हड़बड़ी, हड़बड़ी और हड़बड़ी, खाने-पीने में भी हड़बड़ी। वे किसलिए हड़बड़ी करते हैं? प्रमाद निकालने के लिए? प्रमाद गया और हड़बड़ी घुसी, एक ही तरह के भूत है। बल्कि, यह हड़बड़ी का भूत गलत है। कुछ साधु तो ऐसे होते हैं कि उन्हें यदि किसी के यहाँ लड्ड़ खाने के लिए बुलाया हो तो वे आराम से जाते हैं, हड़बड़ाहट वगैरह उनमें नहीं होती! जबकि कुछ साधु तो रास्ते में चल रहे हों और हम कहें कि, 'मैं अभी आता हूँ, ये सूर्यनारायण के दर्शन करके।' तब ऐसे दर्शन करके यों देखें तब तक तो कहीं दूर पहुँच चुके होते हैं! उसका क्या कारण? हड़बड़ी-हड़बड़ी। संडास जाते हुए भी हड़बड़ी और पेशाब करते हुए भी हड़बड़ी, चलते हुए हड़बड़ी, खाते-पीते हुए हड़बड़ी, सब जगह हड़बड़ी, हड़बड़ी, हड़बड़ी, हड़बड़ी ! इसके बदले तो लड्डू खाकर रहे, पेट पर हाथ-वाथ फेरे शांति से तो अपने को ऐसा लगता है कि इनके दर्शन करो बेचारों के, और इस जल्दबाज़ के तो दर्शन करने का भी मन नहीं होता। प्रमाद निकालते हुए हड़बड़ी घुस गई, इससे तो प्रमाद अच्छा था। पहले का जो भूत था वह अच्छा था, अपने परिचयवाला तो था! इस हड़बड़ी का तो अपरियचवाला भूत घुस गया! अब प्रमाद को समझते नहीं है और अंधाधुंध सबकुछ करते हैं। जल्दबाज़ी का कारण क्या है? तब कहे, प्रमाद छोड़ दिया है उन्होंने। अरे, देह का प्रमाद नहीं छोड़ना है, देह का प्रमाद तो रखना है। आराम
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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