________________ निष्पक्षपाती मोक्षमार्ग 469 अधिक? और उतावलेपन पर राग क्यों किया है? अब ये राग-द्वेष छोड़ने हैं और राग-द्वेष करो तो कैसे चलेगा? अभी तो चाय पी रहे हो तो नहीं पीने देते, दूध डालने से पहले धक्का मारते हैं, अब इन्हें कैसे पहुँच पाएँ? क्रमिक मार्ग है ही ऐसा कठिन, बहुत कठिन मार्ग है। कृपालुदेव ने प्रभुश्री से कहा कि, 'संस्कृत सीखकर आओ' तो प्रभुश्री ने कहा, 'अब 46 साल हो गए, अब मैं कहाँ इस उम्र में सीखू और क्या मुझे आ पाएगा? इससे अच्छा तो मुझे कोई और रास्ता दिखाइए न!' तब कृपालुदेव ने कहा कि, 'विक्टोरिया रानी सभी भाषा सीखती हैं, इतनी बड़ी 76 साल की हैं, फिर भी वे 76 साल की उम्र में अपनी भाषाएँ सीख रही हैं तो आपको क्या अपनी मातृभाषा भी नहीं आएगी। सीखकर आओ।' वह आज्ञा हुई इसलिए सीखना पड़ा। तो प्रभुश्री कहते थे कि, 'मैं खंभा पकड़कर, गम गच्छति टु गो, गम गच्छति टु गो' ऐसे बोलता था, ताकि नींद नहीं आ जाए, प्रमाद नहीं हो। अब कब पार आए? और उन्होंने बाइस पुस्तकें लिख दीं, इतनी मोटी, और कहा कि इन्हें साथ के साथ रखना और अंदर से विचार आए तो तुरंत ही इनमें देख लेना! यह है क्रमिक मार्ग! कपालदेव 'ज्ञानीपुरुष' थे और उनका मार्ग भी सच्चा है, दुषमकाल में सच्चे ज्ञानी हो चुके हैं, लेकिन वस्तुस्थिति में क्रमिक मार्ग कितना कष्टदायी है और यह अपना तो अक्रम मार्ग, सरल मार्ग प्राप्त हुआ है। जबकि लोग इसकी कदर नहीं करते, यानी अब खरा टाइम आया है, एक मिनट तो एक मिनट, लेकिन यहाँ तो एक मिनट की अधिक क़ीमत है। फिर से ये 'दादा' एक मिनट भी दर्शन करने को नहीं मिलेंगे! एक दिन ऐसा आएगा कि ये 'दादा' दिन में एक मिनट के लिए भी दर्शन करने को नहीं मिलेंगे! 'यह' प्रकट साइन्स जिस घड़ी बाहर जगत् में प्रकट होगा उस घड़ी जगत् क्या खुद को रोक सकेगा? दो प्रकार के मोक्षमार्ग हैं : एक चालाक व्यक्ति को मिला हुआ मोक्षमार्ग और दूसरा आलसी व्यक्ति को मिला हुआ ऐशोआरामवाला मोक्षमार्ग। संसार में चालाक अधिक होते हैं, ऐशोआरामवाले ज़रा कम होते हैं। ये लोग ऐशोआरामवाले नहीं हैं, लेकिन लोग समझे बिना इस शब्द का उपयोग करते हैं। 'यह' तो अलग ही है, इसमें संसारी मोह नहीं है, ऐशोआराम है, लेकिन संसारी मोह नहीं है। अतः यह अपना