________________ 468 आप्तवाणी-२ उतावला नहीं है, आत्मा परमात्मा है, वहाँ हड़बड़ाहट की ज़रूरत है? चाय पीओ, नाश्ता करो, बाजे बजाओ, सबकुछ करो लेकिन यह तो हड़बड़ाहट, हड़बड़ाहट और हड़बड़ाहट और ये क्रमिक मार्ग के ज्ञानी तो पानी भी नहीं पीने देते. गले भी नहीं उतरने देते। हम अगर पानी पी रहे हों और थोड़ी देर लगे तो कहेंगे, 'हट-हट, यहाँ से जा, प्रमाद कर रहा है?' रख तेरा प्रमाद! प्रमाद तेरे घर ले जा, नहीं जाना ऐसे मोक्ष में! ऐसे कहीं मोक्ष में जाते होंगे? महाराज पानी नहीं पीने देते, गले नहीं उतरने देते, ऐसे कहीं मोक्ष में जाया जाता होगा? आपने ऐसा देखा है? हड़बड़ाहट नहीं देखी? प्रश्नकर्ता : देखी है न, मैं तो दो साल साधुओं के साथ रहकर आया हूँ दादा। दादाश्री : वहाँ प्रमाद नाम का शब्द होता है और वह सभी को हड़बड़ाहट, हड़बड़ाहट करवाता है। इससे तो प्रमाद कर न, तो हड़बड़ाहट मिट जाए! कितना विरोधाभास है? यह तो, 'यह' साइन्स, ग़ज़ब का साइन्स प्रकट हुआ है! यह साइन्स! पूरा जगत् दांत में उँगलियाँ दबाएगा वैसा साइन्स प्रकट हुआ है। 'जैसा है वैसा' ओपन हुआ है, नहीं तो यहाँ भी हड़बड़ाहट होती न, तो दादा आपको चाय-वाय नहीं पीने देते, 'अरे, चाय पी ली या नहीं? उठो, चलो, चलो गाओ, चलो तालियाँ बजाओ' ऐसा करते, लेकिन यहाँ पर हड़बड़ाहट वगैरह नहीं है! आत्मा ऐसा हड़बड़ाहटवाला नहीं है, आत्मा परमात्मा है। वह क्या ऐसा पागल होगा? ऐसा? हम आत्मा जैसे बन जाएँगे, तो आत्मा प्राप्त होगा। अब मेरी इस बात का सभी से कैसे मेल खाए?! मैं प्रमाद शब्द को हटाना चाहता हूँ। इसने तो प्रमादी आत्मा छोड़ा और अब हड़बड़ाहटवाला आत्मा उत्पन्न किया, तो भाई, मूल आत्मा को तू कब प्राप्त करेगा? प्रमादी आत्मा था, तब फिर हड़बड़ाहटवाला खड़ा किया। उससे तो प्रमादी आत्मा अच्छा था कि किसी को पत्थर तो नहीं मारता था। इस उतावले से तो किसी को धक्का भी लग सकता है, प्रमादी को कुछ भी नहीं है। बेचारा आहिस्ता चलता है। इसका मतलब प्रमाद को हम पसंद करते हैं ऐसा नहीं है, लेकिन प्रमाद पर आपने द्वेष क्यों किया है इतना