________________ निष्पक्षपाती मोक्षमार्ग 467 था! जब घर छोड़कर निकले - छोड़ा नहीं था उन्होंने, वे तो संयोगिक पुरावे (सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स) थे, जैसे कि मैं सांताक्रुज से यहाँ दादर आया तो इससे क्या मैंने सांताक्रुज छोड़ दिया? नहीं! उसी प्रकार वे तो संयोगिक पुरावे थे। भीतर से 'व्यवस्थित' जैसा मार्गदर्शन करता है, उसी तरह जाते हैं, उन्हें खुद को कुछ भी करने को नहीं रहता, कर्तापन रहा ही नहीं। जिसमें कर्तापन नहीं रहा उसे भोक्तापन नहीं रहा! जिसमें कर्तापन बाकी नहीं रहता उसे भोक्तापन भी नहीं रहता। भगवान ने जो कहा उसे इन महाराजों ने पकड़ लिया कि हम जैनों के साधु हैं न? भगवान ने कारण-सिद्ध किसे कहा है? साधु को, उपाध्याय को, आचार्य को और तीर्थंकर भगवानों को, इन चार को - कारण सिद्ध कहा है। वे संसारी दिखते ज़रूर हैं, दिखने में संसारी जैसे ही हैं, लेकिन भोगवटा में फर्क है। ये चारों सिद्धसम सुख भोगते हैं और आप संसारीपन के सुख-दुःख का वेदन करते हो! ये सभी आचार्य महाराज कहते हैं, 'हम संसारी नहीं कहलाते।' 'महाराज, किस आधार पर संसारी नहीं कहलाते हैं? हमें प्रमाण दिखाइए तो हमें मंजूर है। कसौटी पर यदि सोना निकले, 25 प्रतिशत सोना निकले, तब भी हम 100 परसेन्ट सोना मान लेंगे!' और फिर हम कितनी छूट दें? 25 प्रतिशत को 99 प्रतिशत मान लें, तब तक चला सकते हैं, लेकिन फिर जब हम समझाएँगे तो वे ही कहेंगे कि 'हम कारण सिद्ध नहीं हैं।' आप सिद्ध पद भोग रहे हैं क्या? कषाय तो खड़े ही हैं। पूछो कि, 'महाराज, आप में कषाय हैं न?' तो कहेंगे, ‘हाँ कषाय तो हैं ही न।' तब हम कहें कि, 'तो महाराज, आप कारण-सिद्ध नहीं हैं।' तब महाराज ही कहेंगे, 'ना, हम संसारी हैं, संपूर्ण संसारी!' हम सभी से पूछे तो सभी कहेंगे या नहीं कहेंगे? कहेंगे ही न! नहीं कहेंगे तो हम थोड़ा सा उकसाएँगे तो तुरंत ही पता चल जाएगा। लेकिन उकसाने से पहले ही चिढ़ जाते हैं, बात करते ही चिढ़ जाते हैं ! क्योंकि उतावले व्यक्ति तो बात करते-करते भी चिढ़ जाते हैं! हड़बड़ी और प्रमाद चाहे कैसे भी संयोग आएँ, लेकिन उतावला मत हो जाना। आत्मा