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________________ 466 आप्तवाणी-२ अभी तो यह हिन्दुस्तान थोड़ा और उबलनेवाला है, लेकिन परिणाम सुंदर आएगा, जहाँ 'ज्ञानीपुरुष' और उनके हाथ से 2103 ज्ञानी तैयार हुए हैं, और दूसरी भी कितनी ही 'टिकिटें' आई हुई हैं, जो किसी काल में पैदा नहीं हुए थे, वे आज हुए हैं! ये सभी धर्मों को ऊपर लाएँगे। ये सभी धर्म अपसेट हो चुके हैं, उन्हें हम फिर से अपसेट कर देंगे! इसलिए फिर क्या हो जाएगा? सेट अप हो जाएगा! असंसारी कौन? कुछ साधु ऐसा कहकर गृहस्थियों का तिरस्कार करते हैं कि, 'तुम संसारी हो, संसारी हो' - लेकिन हे साधुओं, आप भी संसारी ही हो। आपको असंसारी किसने कहा? आप त्यागी ज़रूर हो, उसे क्या हम नकार रहे हैं? उन्होंने स्त्री का त्याग किया है, कपड़े-वपड़े, वेष का त्याग किया है, वह सब हम जानते हैं, लेकिन महाराज संसारी तो हैं ही न! भगवान ने जीवराशि के दो भाग किए हैं - एक संसारी और दूसरे सिद्ध। सिद्ध के अलावा अन्य सभी संसारी हैं। भगवान ने कहा है कि, 'उनमें से जो कारण-सिद्ध हो चुके हैं, उतनों को हम एक्सेप्ट करते हैं और उन्हें हम असंसारी कहते हैं।' हे भगवान! जो ऊपर चले गए हैं वे असंसारी और यहाँ पर मनुष्य योनि में हैं, वे भी असंसारी? तो वे कहते हैं, 'हाँ। जो कारण-सिद्ध हो चुके हैं उन्हें हम यह पद दे रहे हैं, तब आप कहो कि, 'हे भगवान, कारण-सिद्धवाले को यह पद देते हैं तो औरों ने क्या गुनाह किया है?' तब वे समझाते हैं कि, 'कारण-सिद्ध' मतलब यह कि वे सिद्ध होनेवाले हैं, थोड़े ही समय में, इसलिए उन्हें अभी से ही इस सीट का रिज़र्वेशन दे देते हैं!' 'भगवान, इन सबमें भेद क्यों डाला?' तब भगवान कहते हैं, 'भेद में तो, उसे अंदर भेद बरतता है इसलिए। कारण-सिद्ध को अंदर भेद नहीं बरतता, कारण-सिद्ध को तो अंदर मोक्ष ही बरतता है। तो फिर जिसे मोक्ष बरतता है उसे संसारी कैसे कहा जाए?' भगवान महावीर कम उम्र में भी बहुत समझदार थे! 72 साल की उम्र में निर्वाण हुआ, लेकिन बहुत सयाने थे! कितने समझदार थे! 30 साल की उम्र में तो भगवान का सयानापन अपने को आनंद प्राप्त करवाए वैसा
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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