________________ निष्पक्षपाती मोक्षमार्ग 465 आचार्य तो कैसे होते हैं? एक आँख दिखाएँ तो सौ शिष्यों को पसीना छूट जाए। उन्हें डाँटना नहीं पड़ता, सिर्फ आँखों से ही काम हो जाता है। शील ही काम करता है। आचार्य तो शीलवान होते हैं। इन शिष्यों के सिर पर तो भय चाहिए। पुलिसवाले का भय नहीं चाहिए, लेकिन शील का भय चाहिए। सिर्फ हवा से ही भय रहता है। हमारे पास कोई नियम नहीं है, फिर भी सब नियम में क्यों रहते हैं? हमारे शील से। वीतराग के यहाँ कानून नहीं होते, वे तो पक्षपात से दूर होते हैं। आपको दो उपवास करने की इच्छा हो तो महाराज आशीर्वाद देते हैं कि, 'दो उपवास कर।' तो शिष्य को अंदर वैसा रहता है और घोटाला नहीं करता। उसे वचनबल कहते हैं। यह तो शिष्य अंदर बड़बड़ाते हुए महाराज की आज्ञा का पालन करता है। सच्चे गुरु और सच्चे शिष्य के बीच प्रेम की ऐसी कड़ी होती है कि गुरु भले ही कुछ भी बोले फिर भी शिष्य को बहुत अच्छा लगता है। जहाँ जैन हो, वहाँ कषाय नहीं और जहाँ कषाय हों, वहाँ जैन नहीं है। वीतरागों का मार्ग तो कषाय रहित बनना, वही है। अंतिम पंद्रह जन्म रहे तभी से कहा जाता है कि वीतराग धर्म को प्राप्त किया। 'जिन' को सुने, वह जैन। जैनों के लिए तो क़रारनामा नहीं होता, उनके तो वचन से ही काम होते हैं। ये सेना, पुलिस, वगैरह जैनों के लिए नहीं होना चाहिए, जैनों के लिए सिर्फ टैक्स होना चाहिए। अब इन सबका अंत आ जाएगा। इस दुषमकाल का अंत आ रहा है। सत्ता दुषमकाल की रहेगी, लेकिन उसका अंत आ रहा है! अभी यह उमस भरा माहौल सात साल तक रहेगा। तपने के बाद धर्मोन्नति ___कितने ही लोग मुझसे पूछते हैं कि, 'दादा, इस हिन्दुस्तान का क्या हो रहा है? यह भ्रष्टाचार विरोध की क्रांति, यह रेल्वे की हड़ताल, यह सब क्या हो रहा है? यह कब पूरा होगा?' तब मैं उन्हें समझाता हूँ कि, 'यह तो आलू उबालने के लिए रखे हैं, उसे पाँच ही मिनट हुए हैं। अभी तो मुश्किल से छिलका ही उबला है। अब आलुओं को यों ही निकाल दोगे तो क्या होगा? वे किसी भी काम में नहीं आएँगे। इसके बजाय तो आराम से आलुओं को उबलने दो, फिर मज़ेदार आलूबड़े बनेंगे, वे खाना।