________________ निष्पक्षपाती मोक्षमार्ग 461 एक क्षण के लिए भी गाफ़िल नहीं रहना चाहिए। गाड़ी में गाफ़िल नहीं रहता और जहाँ अनंत जन्मों की भटकन में है, वहाँ गाफ़िल रहता है! भगवान ने कहा है, 'हे जीव बूझ, बूझ। सम्यक् प्रकार से बूझ।' भगवान की कही हुई बातों की विरोधी बातों से मुक्त हो जाएँ, तभी मोक्ष सच्चा मार्ग मिले तो हल आए प्रश्नकर्ता : हमेशा व्याख्यान में जाना, मेरा ऐसा नियम है। दादाश्री : रोज़ नहाएँ और शरीर का मैल नहीं जाए तो किस काम का? यह तो रोज़ व्याख्यान में जाता है, लेकिन मन का, वाणी का, बुद्धि का मैल नहीं जाए तो किस काम का? अपना दारिद्र्य खत्म नहीं हो तो किस काम का? व्याख्यान देनेवाला भले ही कितना भी जानता हो लेकिन अपना दुःख नहीं घटे तो बेकार ही है न! जिससे अपने दुःख जाएँ, वैसे किए हुए दर्शन काम के हैं, नहीं तो दर्शन करना किसी काम का नहीं है। सामनेवाले के पास पचास बंगले हों, लेकिन उसके दर्शन से हमें झोंपड़ी भी नहीं मिले तो वे दर्शन बेकार के ही हुए न? जिन महाराज के दर्शन करने पर भी दु:ख नहीं जाएँ, तो वे खुद कितने दुःखी होंगे? यह घानी का बैल देखा है न? वह आँखों पर पट्टी बाँधकर मन में ऐसा मानता है कि, 'मैं चल रहा हूँ' और पट्टी खोले तो उसी जगह पर! उसी तरह यह जगत् घानी के बैल की तरह चलता रहता है और मेहनत बेकार जाती है। जब तक यथार्थ ज्ञान प्राप्त नहीं होता तब तक सारी मेहनत बेकार जाती है। यदि मैं स्टेशन का रास्ता नहीं जानता हूँ तो भटक जाऊँगा, और चार गुना रास्ता तय करूँ तब भी ठिकाना नहीं पड़ेगा। जब स्टेशन के रास्ते में भी भटक जाते हैं, तो यह सच्चा रास्ता ढूँढने के लिए ऐसी कितनी सारी भूलें होती होंगी? इसलिए पता तो लगाना चाहिए न? खुद को संतोष नहीं हो रहा हो तो उस रास्ते को बंद करके दूसरा रास्ता ढूँढ निकालना पड़ेगा! मोक्ष की एक ही पगडंडी है, और वह भी फिर