________________ 460 आप्तवाणी-२ पूरी नहीं लेकिन टुकड़ेवाली सुपारी आती है न, उस पर कुछ भी चुपड़ देते हैं जिससे मीठी लगती है, लेकिन वह तो बिगड़ी हुई, सड़ी हुई सुपारी आती है, उसे एक साथ मीठे पानी में डाल देते हैं। भान ही नहीं है लोगों को कि सुपारी खानी है या स्वाद खाना है? स्वाद चाहिए तो मिठाई खा न! अरे, स्वाद के लिए सुपारी खा रहा है? इंसान के भान में भी नहीं है, सुपारी का स्वाद चखना हो तो सुपारी ही खा। सच्ची चीज़ अपने हाथ में ही नहीं आने देते न! ये तो मूर्ख हैं, इसी वजह से मूर्ख को मूर्खतावाली चीज़ खाने को मिलती है और अच्छी चीज़ अच्छों को मिलती है। इसलिए हमने कहा है कि इन मूल् का उपकार मानना कि उनके कारण हमें अच्छी चीज़ मिल रही है। मूर्ख क्यों कहा? क्योंकि पैसे देकर भी मूर्खतावाला माल ले आए! वीतरागों की सूक्ष्म बात अभी तो दीक्षा भी नहीं रही और महाव्रत भी नहीं रहे। अरे, अणुव्रत भी नहीं रहे, उसके बदले में पूरा कल्चर्ड घुस गया और सच्चा चला गया। व्रत किसे कहते हैं? बरते उसे व्रत कहते हैं। उसमें कोई चीज़ याद ही नहीं आती, 'क्या छोड़ना है और क्या छूट गया है' वह याद ही नहीं रहता। 'यह छोड़ा और वह छोड़ा' वह याद रहा तो उससे तो जोखिम है। कहाँ भगवान महावीर का एक वाक्य! उसे समझे नहीं, अंत में मुँहपट्टी बाँधी! एक के बाद दो होता तो वह ठीक है, ऐसा हम कहते हैं, लेकिन यह तो मुँहपट्टी तो अंतिम दशा में व्यक्ति विचर रहा तो हो हाथ में एक कपड़ा रखना चाहिए कि जहाँ बहुत जीव उड़ रहे हों तो मुँह के पास कपड़ा ढकना चाहिए। वह कपड़ा उस जीव को बचाने के लिए नहीं रखते हैं, क्योंकि कोई जीव दूसरे को बचा ही नहीं सकता, लेकिन यह तो जीवजंतु मुँह में या नाक में न घुस जाएँ और प्रकृति को नुकसान नहीं करें, उसके लिए मुँहपट्टी रखनी होती है। यह मुँहपट्टी तो अंतिम कारण है। उससे पहले तो 'केवलज्ञान' के और ऐसे सभी दूसरे बहुत सारे कारणों का सेवन करना चाहिए। लेकिन यदि अंतिम कारण का पहले सेवन किया जाए तो वह किस काम का? यह तो भयंकर भूलें हो रही हैं।