________________ 458 आप्तवाणी-२ चार सौ बीसी का गुनाह करता है? वकील चार सौ बीसी करेगा तो क्या होगा? देखो रोग घुस गए हैं! जो जैनों में जन्म लेते हैं वे तो वकील कहलाते हैं। जो नियम जानता है, वही यदि कपड़ा खींचे तो क्या होगा?! हमारे हिस्से में यह कचरा साफ करना आया है! हमें तो भला 'इतनी-इतनी' देना अच्छा लगता होगा? ऐसे शब्द क्या हमें शोभा देते हैं? जिनकी वाणी 'प्रत्यक्ष सरस्वती' है, ऐसे 'ज्ञानीपुरुष' के हिस्से में इस काल में कचरा बुहारने का काम आया है और वह निकलेगा भी सही। इस काल में सारा सड़ा हुआ माल है ! यह हमारी वीतराग वाणी ही सारा कचरा साफ कर देगी! हमें खुद नहीं जाना पड़ेगा। हम कहते हैं कि 2005 के साल में तो बाहर के सभी देश हिन्दुस्तान को वर्ल्ड का केन्द्र मानकर यहाँ धर्म सीखने आएँगे! और तब एक बाल बराबर भी भ्रष्टाचार नहीं रहेगा और जैसा सुख किसी भी काल में नहीं था, वैसा सत्युग जैसा सुख लोग भोगेंगे! अन्य तीर्थंकरों की तुलना में भगवान महावीर का शासन बेजोड़ होगा! अन्य किसी भी तीर्थंकर का शासन ऐसा बेजोड़ नहीं रहा होगा! सच्ची दीक्षा प्रश्नकर्ता : महाराज कहते हैं कि दीक्षा के बिना मोक्ष नहीं है। क्या यह बात सच है? दादाश्री : बात सच है, दीक्षा के बिना मोक्ष नहीं है, लेकिन दीक्षा किसे कहेंगे? दीक्षा की परिभाषा तो होनी चाहिए न? कौन सी दीक्षा से मोक्ष होता है? हम यह क़बूल करते हैं कि दीक्षा के बिना मोक्ष नहीं है, लेकिन खरी दीक्षा को वे समझे नहीं हैं। महावीर भगवान की कही हुई दीक्षा हम ही दे सकते हैं। प्रश्नकर्ता : दीक्षा अर्थात् क्या? दादाश्री : 'ज्ञान' को 'ज्ञान' में स्थापित करना और 'अज्ञान' को 'अज्ञान' में स्थापित करना, वह दीक्षा कहलाती है। सिर्फ 'दादा' ही सच्ची दीक्षा दे सकते हैं। जो खुद ही दीक्षित नहीं हुआ, वह कहाँ से दीक्षा दे सकेगा? और कहेगा कि, 'मैंने दीक्षा ली है।' दो तरह के मोती होते हैं,