________________ निष्पक्षपाती मोक्षमार्ग 457 सामनेवाला आग्रह रखे तो हमें वह दे देना चाहिए, वहाँ ममत नहीं रखना चाहिए। लेकिन यदि वह ले जा रहा हो तो उसे चुपचाप ले जाने दें, वीतराग ऐसे नहीं होते। जो चुपचाप नहीं ले जाने देते, उन्हें ऐसा नहीं कहा है कि 'ये वीतराग नहीं हैं'। वर्ना यह तो कोई उसकी बेटी को उठाकर ले जाए, और वहाँ कहता है, 'मेरी बेटी है, मुझे उसका अच्छी जगह पर विवाह करवाना है।' सब कहता है, लेकिन यदि वह कम्पलीट ड्रामेटिक हो, तो वह वीतराग है। लेकिन ऐसा नहीं कहते कि ममत पर उतर आया है?! ममत का मतलब आग्रह पर चढ़ना। वीतराग मार्ग में ममत नहीं होता, अन्य मार्गों में ममत होता है। एक ही बार ड्रामेटिक तरीके से कहना कि, 'बाहर अंधेरा है' और आप कहो कि, 'नहीं, उजाला है!' मैं फिर कहूँ कि, 'देखो न भाई, अभी भी अंधेरा है।' ऐसे विनती करके देखू, फिर भी यदि आप नहीं मानो तो मैं वापस ममत नहीं पकडूंगा। यदि कोई किसी का ऊपरी होता तो मैं मार-ठोककर मनवा लेता, लेकिन कोई किसी का ऊपरी नहीं है! भगवान ने व्यवहार धर्म को क्या कहा है? बाहर तो सब तरफ निश्चय धर्म नहीं चलता है। वह तो सिर्फ यहीं पर है। व्यवहार धर्म मतलब क्या? कि लोकमत। लोकमत के विरुद्ध जाए, उसे ममत कहते हैं। यह तो हर एक व्यक्ति कहेगा कि, 'यह तो संकुचित धर्म है।' यह तो एक महाराज कहते हैं कि, 'आज सातम है' और दूसरे कहते हैं कि, 'आठम है,' तो दोनों को निकाल देना चाहिए। यह तो, ममत पर उतर आते हैं, उसी का झगड़ा है? जो सातम-आठम का प्रकाश करता है, ऐसे इस चंद्रमा का किसी से झगड़ा नहीं है और ये लोग झगड़ा करते हैं! दृष्टिवादी, कदाग्रही, दुराग्रही, अभिनिवेषी ये सब अपना क्या भला करेंगे? उनका खुद का ही भला नहीं होता न! यह तो उन्हें संयोग नहीं मिला है इसलिए, इसमें उनका दोष नहीं है। यहाँ सभी खुलासे प्राप्त कर लें तो हल आ जाए, ऐसा है। ये सब तो पज़ल हैं! वीतरागों ने क्या कहा है कि लोग भले ही कुछ भी कर रहे हों, तू वह मत करना, मात्र तेरे हित का ही करना। ये जो दूसरे लोग गुनाह कर रहे हैं, वे तो नहीं जानते होंगे, लेकिन तु तो जैन है। वकील होकर