________________ निष्पक्षपाती मोक्षमार्ग 455 इकट्ठे हुए हैं? सभी को इकट्ठा होना चाहिए, वर्ना वे महावीर के विरोधी हैं, ऐसा ही डिसीज़न आ गया! वीतराग मार्ग में किंचित् मात्र आग्रह नहीं होता। ये तो दुराग्रह और हठाग्रह पर चढ़ गए हैं ! जो साधु सत्य-असत्य की चर्चा-विचारणा साथ में बैठकर नहीं कर सकते, वे महावीर के साधु नहीं हैं। महावीर का एक शिष्य तो 45 आगम पढ़कर बैठा हो और दूसरा दो ही आगम पढ़कर बैठा हो, फिर भी दोनों साथ में बैठकर चर्चा-विचारणा करते हैं और कोई भले ही कितनी भी भूल करे, लेकिन वह कषाय नहीं करता। झगड़े नहीं करता और साथ में बैठकर चर्चा-विचारणा करके सत्य का दोहन करता है, वही काम का! कोई हमसे कहे कि, 'पटेल, आप यहाँ पर हमें सही बात समझाने के लिए पधारेंगे?' तो हम जाते हैं और कहते हैं कि, 'महावीर क्या कहना चाहते थे!' 'हम' आपको महावीर के वे ही शब्द कहेंगे, लेकिन यदि सीधे रहोगे तो! 'मैं आचार्य,' ऐसा रखकर नहीं बैठेंगे तो! जहाँ जुदाई नहीं लगे, वह महावीर का मार्ग है। यह तो पाँच लोग इकट्ठे नहीं रह सकते, अंदरअंदर झगड़ा करते हैं। बाहर लड़ते हैं, वह तो हम जानते थे, लेकिन ये तो अंदर-अंदर भी लड़ते हैं! जहाँ निष्केफ, वहाँ मोक्ष हम अहमदाबाद गए थे, तब एक आचार्य महाराज मिले थे। पर्दूषण के दिन थे। हज़ारों लोग आचार्य महाराज को वंदन करने आ रहे थे। उन्होंने हमारा परिचय करवाया कि, ये 'ज्ञानीपुरुष' हैं। तो तुरंत ही उन्होंने हमारे दर्शन किए और आसन पर से नीचे उतरकर बैठ गए! हमने कहा, 'इससे तो आपका काम ही निकल जाएगा,' ऐसा सुंदर विनय तो काम निकाल लेगा, तब उन्होंने कहा, 'मुझे अंदर से हुआ, इसलिए नीचे बैठ गया।' फिर उनसे हमने पूछा कि, 'शास्त्र पढ़ते हैं?' उन्होंने कहा, 'शास्त्र तो बहुत पढ़े हैं।' हमने कहा, 'शास्त्र तो आपने बहुत पढ़े हैं, लेकिन वे शास्त्र भगवान की आज्ञापूर्वक पढ़े या फिर यों ही पढ़े?!' भगवान क्या कहते हैं कि, 'जिन