SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 491
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 454 आप्तवाणी-२ पड़ेगा वहाँ तो! आपको यदि वास्तव में मोक्ष में जाना हो तो मेरे कठोर शब्द सुनने पड़ेंगे। अनंत काल का रोग नाभि पेट से लेकर गले तक भर चुका है, अब मुझे ऑपरेशन करके भीतर चिमटा डालकर वह रोग निकालना पड़ेगा। इसलिए पहले से ही बोल देना, एक बार चिमटा डालने के बाद ऑपरेशन अधूरा नहीं छोड़ा जा सकेगा, फिर 'ओ, ओ' करोगे तो नहीं चलेगा। इसलिए आपको क्या चाहिए? मोक्ष या संसार का वैभव? जो चाहिए वह हम देने के लिए तैयार हैं। प्रश्नकर्ता : हमें तो मोक्ष ही चाहिए। दादाश्री : तो हमारे ये शब्द पचाने पड़ेंगे, समझने पड़ेंगे। ये वीतराग के साधु तो कैसे होते हैं? यदि सभी मतभेद में पड़े हुए हों तो वे मतभेद दूर करते हैं। संघपति, साधु, सन्यासी, जैन सभी एक साथ मिलकर चर्चाविचारणा करते हैं। कोई बूढ़े साधु हों, उन्हें कुर्सी देते हैं और जवान साधु भले ही नीचे बैठें, इतना तो करना चाहिए न! सभी को साथ में बैठकर चर्चा-विचारणा करनी चाहिए। वीतराग धर्म किसे कहते हैं? कोई महामुनि हों और वहाँ पर छोटा, नया शिष्य पूछने जाए और महामुनि उसका जवाब नहीं दें तो वह मुनि नहीं है, महामुनि नहीं है, और किसी भी कक्षा में नहीं है! भले ही सामनेवाला चाहे कितना भी गलत बोल रहा हो, लेकिन एक बार तो उसकी सुनते हैं और फिर चर्चा-विचारणा करते हैं। चर्चाविचारणा से वह कुछ प्राप्त करेगा। इसलिए भगवान ने कहा है कि, आग्रहकदाग्रह मत करना, चर्चा-विचारणा करना कि अपनी क्या भूल हो रही है? आप इस दुषमकाल के साधु हो इसलिए आप अकेले मत बैठना, साथ में संघपति और संघ को रखना, क्योंकि भगवान ने ऐसा कहा है कि संघ, वह पच्चीसवाँ तीर्थंकर है। सही-गलत का न्याय वह कमिटी कर देगी। जहाँ भूलरहित होगा, वहाँ संघपति कह देंगे कि यह सत्य है, क्योंकि भीतर आत्मा है इसलिए उन्हें तुरंत पता चल जाता है कि यह सही है उसका, लेकिन सत्य निकलना चाहिए और असत्य निकले तब भी समझ में आ जाएगा कि यह असत्य है। सभी को साथ में बैठने में हर्ज क्या है? सभी संप्रदायवाले क्या कभी भी चर्चा-विचारणा के लिए, सत्य जानने के लिए
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy