________________ निष्पक्षपाती मोक्षमार्ग 453 है, उसे जानता नहीं है। इन सभी ने मोह को भी जीत लिया है, लेकिन एक खुद के मत के मोह को नहीं जीत पाए! मताभिनिवेष (मत का आग्रह) हो गए है! मताभिनिवेष से संसार में पाप खड़े रहे हैं। जहाँ 'ज्ञानीपुरुष' और उनके महात्मा नहीं होते, वहाँ पर मताभिनिवेष अवश्य है ही और जहाँ मताभिनिवेष हो, वहाँ ढूँढने से भी आत्मा नहीं मिलता। आत्मा खुद ही मताभिनिवेष से ढंक गया है। मत के आग्रह से कोई भी छूट नहीं सकता। भगवान ने विषयों को मोह नहीं कहा है, मत को मोह कहा है। वीतराग मार्ग विरोध विहीन जहाँ वीतरागों का मार्ग हो, वहाँ विरोध नहीं होता। प्रश्नकर्ता : ये जो महावीर जयंति मनाते हैं, उसका कुछ लोग विरोध क्यों करते हैं? दादाश्री : ज्ञानी किसी चीज़ का विरोध नहीं करते, चलती गाड़ी को रोकते नहीं हैं। ये सब लोग क्या ज्ञानी हैं? ये सभी तो मतांध हैं, मत की पूँछ पकड़कर रखते हैं, खुद के अहंकार के पोषण के लिए! यह तो झूठी ममत है, उससे कौए का बाघ बना देते हैं! वीतराग मार्ग के आचार्य कैसे होते हैं, उसकी परिभाषा बताता हूँ। चाहे कैसे भी, चाहे किसी की भी बात हो फिर भी वे सुनने को तैयार रहते हैं, कोई कुछ सुनाने आए तो शांतभाव से कहेंगे कि, 'हाँ, बात करो।' यह हमारी बात ज़रा कठिन लगेगी, लेकिन यदि आपको मोक्ष में जाना हो तो हमें इतना-इतना, बड़ाबड़ा, तोल-तोलकर देना पड़ेगा, और यदि आपको मोक्ष में नहीं जाना हो और संसार में रहना हो तो हम आपको फूलों का हार पहनाएँगे। अब आप ही तय करके जो चाहिए, वह पसंद करना। __ आपकी आड़ाई ही मोक्ष में जाते हुए बाधक है। खुद अपनी ही आड़ाई बाधक है, बाकी कुछ भी इस जगत् में बाधक नहीं है, विषय बाधक नहीं है। इसलिए सीधा हो जा। साधु होने की ज़रूरत नहीं है, सीधा होने की ज़रूरत है। मोक्ष की गली इतनी अधिक सँकरी है कि वहाँ पर यदि तू आड़ा चलेगा तो उसमें से नहीं निकल पाएगा, सीधा-सरल बनना ही