________________ 452 आप्तवाणी-२ तो अपनी भाषा में समझता है कि, 'मुझे क्या कर रहे हैं? मुझे कहाँ ले जाएँगे?' वह बैल आड़ाई कर रहा था, वह नहीं चढ़ने के लिए प्रयत्न कर रहा था, तो पाँच सौ लोग रास्ते में इकट्ठे हो गए! जैसे मुक्ति-सुख नहीं बँट रहा हो! बंधन की तो भयंकर वेदना है। हकीकत में स्वरूप जानने को नहीं मिला, उसका प्रत्यक्ष प्रमाण आज हम लोग खुद यहाँ पर हैं, वह है! यदि हकीकत में स्वरूप जानने को मिला होता तो ऊपर मोक्ष में नहीं पहुँच गए होते? इस मनुष्य जन्म में ही मोक्ष का मार्ग प्राप्त हो सकता है। इस गति में से चारों गतियों में जा सकते हैं, और मोक्ष भी इस मनुष्य गति में ही मिल सकता है। जो मोक्ष दे, मुक्ति दे वही धर्म सच्चा है, बाकी, सब तो अधर्म ही हैं। भगवान ने कहा है कि, 'इस काल में मोक्ष बंद है, लेकिन मोक्षमार्ग बंद नहीं हुआ है, मोक्षमार्ग खुला है।' लोग समझे कि मोक्ष बंद हो गया है इसलिए टेढ़े मार्ग पर चलने लगे हैं। 21,000 साल जिनका (भगवान महावीर का) शासन है, तो यदि मोक्षमार्ग बंद हो चुका होता तो उस शासन की ज़रूरत ही क्या थी? ! इसे समझे नहीं। यहाँ पर 'कारण-मोक्ष' हो जाता है। इस मोक्षमार्ग से 'कार्य-मोक्ष' नहीं हो सकता, लेकिन मोक्ष 99,999 तक पहुँचता है, पूरा लाख नहीं हो पाता। मोक्ष दो प्रकार के हैं - 1) कार्य मोक्ष 2) कारण मोक्ष। इस काल में कारण-मोक्ष खुला है और कार्य-मोक्ष बंद है। कारण मोक्ष होने के बाद एक जन्म लेना पड़ता है। हम घंटेभर में कारण मोक्ष दे देते हैं। अभी तो ग़ज़ब का मोक्षमार्ग खुल गया है। 'हम' शासन के श्रृंगार हैं! समकित का दरवाज़ा आए, वहाँ सभी धर्म एक हो जाते हैं। फिर मोक्ष का बड़ा दरवाज़ा आता है। मतभेद मिट जाएँ तो समकित होता है। मतभेद के साथ समकित नहीं हो सकता, ऐसा भगवान ने कहा है। साधुओं ने विषय जीते हैं, लेकिन विषय तो स्वतंत्र हैं। अनंत जन्मों से मत का मोह कि जिसके आधार पर वह लटका है, वह तो जीवित है! मत का आग्रही बन गया है! जिसे नहीं जीतना है, उसे जीतता है और जिसे जीतना