________________ निष्पक्षपाती मोक्षमार्ग 451 मात्र ज्ञान से ही छूट सकता है।' जब तक मन 'तेरा' है, तब तक तू परिग्रही है, और यदि मन का तू ज्ञाता-दृष्टा है, ऐसा हो जाए तो तू अपरिग्रही है। हम परिग्रहों के सागर में भी अपरिग्रही हैं! राग-द्वेष से बंधे हुए हो? नहीं। मात्र अज्ञान से बंधे हुए हो। अज्ञान तो रूट कॉज़ है। वेदांत में कहते हैं कि मल, विक्षेप और अज्ञान निकाल। जैनों में कहते हैं कि, राग-द्वेष और अज्ञान निकाल। अज्ञान दोनों में ही कॉमन है। अज्ञान तो रूट कॉज़ है और राग-द्वेष या मल-विक्षेप वे तो कॉज़ेज़ हैं। रूट कॉज़ चला जाए तो बाकी के कॉज़ेज़ अपने आप ही टूटते जाते हैं। रूट कॉज़ टूटें, अज्ञान जाए, तो आनेवाले जन्म के बीज पड़ने बंद हो जाते हैं। जब तक अज्ञान है तब तक बंध पड़ेंगे ही। एक जन्म बेकार जाए तो उसमें हर्ज नहीं है, कि चलो भाई, एक बेकार गया, लेकिन यह तो 100 जन्मों के बंध डाल देता है, उसमें हर्ज है। बंधन भला किसे पसंद है? यह पूरा समसरण मार्ग जेल जैसा है। शुरू से अंत तक जेल है और जब 'मैं मुक्त हूँ' ऐसा भान हो जाता है, तब जेल में से छूटता है। मिथ्या दर्शन जाए और सम्यक् दर्शन में आ जाए, तो छुटकारा होता है! और 'ज्ञानीपुरुष' ही 'मैं मुक्त हूँ' ऐसा भान करवा देते हैं। 'ज्ञानीपुरुष' कभी भी देह में नहीं रहते। ये साधन ही बंधन बन गए हैं। यह इलेक्ट्रिसिटी, लिफ्ट वगैरह सभी साधन जो खड़े किए हैं, वे ही बंधनरूप हो गए हैं। साधन तो स्वतंत्र होने चाहिए। हर एक का खुद का स्वतंत्र जोग (ऐसे साधन जो खुद को स्वतंत्र बनाए) तो होना चाहिए, साधनों ने तो परतंत्र बना दिया है। अब ये साधन अपने आप ही कम हो जाएँगे और उनके कम ही होने की ज़रूरत है। छूटने की इच्छावाले को यदि सच्चा मार्ग नहीं मिले न तो वे छूटने के साधन ही बंधन रूप हो जाते हैं। ये लोग छूटने के लिए जितने साधन बना रहे हैं, वे ही उन्हें बाँधेगे; क्योंकि वे सत् साधन नहीं हैं। यदि सच्चे साधन होते तो बंधनरूप नहीं होते, वर्ना आर्त और रौद्रध्यान चलते ही रहते। ये बंधन तो जानवरों को भी पसंद नहीं है। आज हम आ रहे थे, तब रास्ते में एक बैल को ट्रक में कितने ही लोग चढ़ा रहे थे, वह बैल