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________________ 450 आप्तवाणी-२ भगवान ने कहा है कि, 'मोक्ष का मार्ग नहीं मिले तो अशुभ में मत पड़ना, शुभ रखना, मोक्षमार्ग मिल जाए, तो उसके बाद शुभाशुभ की ज़रूरत नहीं है।' भगवान का मार्ग तो शुद्ध मार्ग है, वहाँ शुभाशुभ नहीं है, वहाँ पाप-पुण्य नहीं है। पाप-पुण्य दोनों ही बेड़ियाँ हैं। यदि मोक्ष का मार्ग नहीं मिले तो शुभ में पड़े रहना, अशुभ में पड़ेगा तो तू अशुभ का फल सहन नहीं कर सकेगा। तू तो हिन्दुस्तान में ऊँची जाति में जन्मा है, इसलिए साधुसंतों की सेवा, देवदर्शन करके, प्रतिक्रमण-सामायिक, उपवास वगैरह, यह सब करके भी शुभ में पड़ा रहना। शुभ-वह क्रिया मार्ग है और शुभ क्रिया का फल पुण्य मिलेगा। अशुभ क्रिया का फल पाप मिलेगा, पुण्य से कभी न कभी 'ज्ञानीपुरुष' मिल सकते हैं और 'ज्ञानीपुरुष' तो चाहे सो कर सकते हैं, तुझे नक़द मोक्ष दे सकते हैं, क्योंकि खुद संपूर्ण अकर्ता हैं! ज्ञान क्रियाभ्याम् मोक्ष मात्र शुभ क्रिया करने से मोक्ष नहीं मिलता। उससे पुण्य ज़रूर बंधता है, उससे फिर आनेवाले जन्म में मोटर, बंगले, वैभव वगैरह मिलता है, लेकिन तुझे यदि मोक्ष चाहिए तो भगवान कहते हैं, वैसा कर। भगवान क्या कहते हैं? 'ज्ञानक्रियाभ्याम् मोक्ष!' ये प्रतिक्रमण, सामायिक करते हैं वह अज्ञान क्रिया है। मोक्ष इन बाह्य क्रियाओं से नहीं होता। मोक्ष तो ज्ञानक्रिया से होता है। ज्ञानक्रिया मतलब ज्ञाता-दृष्टा रूपी उपयोग रखना, और उसी का नाम मोक्ष है! ज्ञेय को जानना उसका नाम ज्ञानक्रिया और ज्ञेय को समझना उसका नाम दर्शनक्रिया है। बंधन किससे? बंधे हुए किससे हो? क्रिया से? स्त्री से? तप से? वह तो पता लगाना पड़ेगा न? उसका पता लगाएँगे तो कुछ मार्ग मिलेगा कि किस तरह से छूटें! यह तो मात्र खुद के स्वरूप का अज्ञान है, इससे बंधे हुए हो। जो अज्ञान से बंधा हुआ है, वह क्या इन बाह्य क्रियाओं द्वारा छूट सकेगा? पत्नी से छूट सकेगा? घरवाली को छोड़ने से क्या घर से छूट सकेगा? यदि परिग्रह जला देगा तो क्या खुद छूट सकेगा? 'अज्ञान से बंधा हुआ
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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