________________ 448 आप्तवाणी-२ दादाश्री : मुक्तभाव! सिद्धगति ! आत्मा सिद्धक्षेत्र में जाता है, वहाँ पर प्रत्येक आत्मा मुक्त रहता है और ज्ञाता-दृष्टा और परमानंद में रहता है। यहाँ आप हाथ ऊँचा करो तो वह सिद्ध भगवंतों के ज्ञान में आ जाता है, लेकिन उसमें वे ज्ञेयाकार नहीं होते, ज्ञानाकार ही रहते हैं! उन्हें बंधन नहीं होता। माँ के पेट में फिर से वेदना लेने कौन आए? उस वेदना को तो सिर्फ भगवान जानते हैं! वे सारी वेदनाएँ तो बेसुधी में भोगी जाती हैं। मनुष्य जाति कुछ लिमिट तक ही दुःख भोग सकती है, उससे अधिक दुःख यदि पड़े, दुःख उसकी सहनशक्ति से बाहर जाए तो वह बेसुध हो जाता है। प्रश्नकर्ता : जो इंसान भगवान का नाम लेकर मरता है, उसका क्या होता है? दादाश्री : जो इंसान होश में मरता है तो फिर से मनुष्य में आता है और मरते समय बेहोश हो वह तो जानवर में जाता है, उसका मनुष्यपन चला जाता है और यह इंसान कहाँ जाएगा वह तो मरते समय पता चलता है और दूसरा, जब अर्थी जा रही हो, तब सज्जन और तटस्थ लोग बात करते हैं कि, 'ये भाई तो भले थे।' तो जानना चाहिए कि फिर से मनुष्य में आएँगे और कहे कि, 'जाने दो न उसकी बात।' तो जानना कि वह व्यक्ति वापस मनुष्य में आने से रहा! यह तो यहीं का यहीं सब समझ में आए, ऐसा है। प्रश्नकर्ता : इंसान के मर जाने के बाद वापस जीव आ जाता है, वह क्या है? दादाश्री : नहीं। आत्मा देह में से जाने के बाद फिर वापस देह में नहीं आता। ऐसा शायद हो सकता है कि आत्मा यदि ब्रह्मरंध्र में चढ़ जाए तो नाड़ी-वाड़ी बंद हो जाती है और यदि आत्मा ताल से नीचे उतरे, तब ऐसा लगता है कि वापस जीव आ गया है। प्रश्नकर्ता : इस काल में मोक्ष नहीं हो सकता? दादाश्री : नहीं। 2500 साल पहले मोक्ष हो सकता था। इस काल में मोक्ष किसलिए बंद है? इतने अधिक कर्म लेकर आए हुए हैं कि