________________ निष्पक्षपाती मोक्षमार्ग 447 इस बंधन में से मुक्ति हो सकती है। 'वीतराग मोक्ष दे सकते हैं, वीतरागों का ज्ञान-वह मोक्षमार्ग है,' जिसे ऐसी सूझ पड़ गई है उसे तो मिथ्यात्व दर्शन, बहुत ऊँचा दर्शन कहा गया है! यह तो औरों की बुराई करता है कि, 'तू मिथ्यात्वी है।' अरे, तू क्या समकिती है, जो औरों को मिथ्यात्वी कह रहा है? और खुद यदि समकिती होता है, तो अन्य किसी का तिरस्कार नहीं करता और यदि मिथ्यात्वी हो तब भी उसके खुद के जैसे मिथ्यात्वी का तिरस्कार नहीं करता। 'यह तो मिथ्यात्वी है' ऐसा कहकर जो तिरस्कार करता है, वह तो 'डबल मिथ्यात्वी' है! मिथ्यात्व दर्शन तो बखान करने योग्य दर्शन है। इस दर्शन में आने के बाद उसे ऐसा भान होता है कि 'मोक्ष में सुख है और संसार में सुख नहीं है,' मोक्ष की इच्छा होती है। उसकी इच्छा तो सम्यक् दर्शन की ही है, लेकिन मिथ्या दर्शन में से छूटा नहीं है, इसलिए भटकता है। इसके बावजूद उसका विल पावर मोक्ष के लिए है और पुद्गल का ज़ोर संसार की तरफ खींचने का होता है, फिर भी वह दोनों को अलग रखता है। संपूर्ण मोक्षमार्ग कहाँ पर होता है? व्यवहार की थोड़ी सी भी उपेक्षा न करे, वह संपूर्ण मोक्षमार्ग है। यदि व्यवहार की उपेक्षा करोगे तब तो सामनेवाले को अड़चन आएगी, सामनेवाले को दुःख होगा, वहाँ पर मोक्षमार्ग नहीं है। जहाँ फुल व्यवहार और फुल निश्चय हैं, वहाँ मोक्षमार्ग है! अपने यहाँ तो व्यवहार-निश्चय दोनों ही फुल हैं। मोक्षमार्ग कहाँ है? जहाँ पर सभी जाति के लोग बैठे हों, फिर भी किसी को वाणी से आपत्ति नहीं हो, वहाँ पर। गँवार बैठा हो, चोर बैठा हो या फिर कोई यूरोपियन हो या मुस्लिम हो, फिर भी किसी को यहाँ वाणी से आपत्ति नहीं होती! हर कोई सुनता है। ऐसा तो कहीं भी हुआ ही नहीं है! सिर्फ महावीर भगवान के सामने ही हुआ था और यहाँ हो रहा है! भगवान निराग्रही थे! मोक्ष के बाद आत्मा की स्थिति प्रश्नकर्ता : मोक्ष होने के बाद आत्मा की क्या गति होती है?