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________________ निष्पक्षपाती मोक्षमार्ग 445 दादाश्री : नहीं। मोक्ष में जाना मतलब फुल स्टेज। मोक्ष यानी परमानंद। मोक्ष से ऊपर अन्य कुछ है ही नहीं, वही सबसे अंतिम है। यदि उससे ऊपर कुछ और है, ऐसा मानें तब तो मोक्ष को समझते ही नहीं हैं। 'मोक्ष यानी मुक्त भाव।' संसार के भावों से मुक्ति, वही परमानंद। ये सांसारिक भाव परमानंद को रोकते हैं। सिद्ध भगवान का क्षणभर का आनंद, वह सभी देवलोकों के आनंद से भी अधिक है। परमानंद क्यों रुका हुआ है? मात्र पहले की गुनहगारी की वजह से। यह गुनहगारी ही खुद के सुख, परमानंद को भी नहीं आने देती। उसी गुनहगारी से परमानंद रुक जाता है! मुक्ति तो किसीने चखी ही नहीं है, वह तो 'ज्ञानीपुरुष' के पास है। उनकी वीतरागता ही मुक्ति है! मुझे तो आप सभी के अंदर 'मैं ही हूँ' ऐसा लगता है! 'ज्ञानीपुरुष' के दर्शन करना आ जाए, तो भी मुक्ति सुख बरतने लगे। प्रश्नकर्ता : दर्शन करने यानी भाव से करना, वह? दादाश्री : नहीं। भाव नहीं। भाव तो होता ही है आपको, लेकिन दर्शन करना आना चाहिए। 'ज्ञानीपुरुष' के एक्जेक्ट दर्शन करना आना चाहिए। जब अंतराय नहीं हों तो ऐसे दर्शन होते हैं और ऐसे दर्शन किए तभी से मुक्तिसुख बरतता रहता है! प्रश्नकर्ता : मोक्ष में जाने की मुहर (स्टैम्प) कौन सी? दादाश्री : वह तो पक्ष में पड़े हुए हैं या नहीं, वही उसकी मुहर है ये सभी डिग्रियाँ हैं और उन डिग्रियों के अंदर डिग्रियाँ हैं। ये सभी अन्य मार्ग पर हैं, लेकिन मोक्षमार्ग की तो एक ही पगडंडी है, और वही एक पगडंडी मिलनी मुश्किल है। अन्य सभी मार्ग ओर्नामेन्टल मार्ग हैं, वहाँ पर फिर बड़ी-बड़ी केन्टीनें हैं, इसलिए ज़रा सा देखा और दौड़े, लेकिन इस मोक्षमार्ग की पगडंडी में तो ओर्नामेन्टल नहीं है, इसलिए इस मार्ग का पता नहीं चलता! गरमी में बैठे हों और हवा आए, और वह भी जब ठंडी लगे तो समझ में आता है कि कहीं बर्फ होनी चाहिए, उसी तरह यहाँ पर आत्मा
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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