________________ निष्पक्षपाती मोक्षमार्ग 443 चाहिए, तो शक्ति ज़ाहिर होगी। जिनका कोई भी दुश्मन नहीं, देव भी दुश्मन नहीं है, वैसे 'मोक्षदाता पुरुष' का निमित्त चाहिए। यह तो हम कहते हैं कि, 'मोक्षमार्ग खुला है।' तो उससे उस तरफ चलना शुरू कर देगा और उसके द्वारा ऊँचे जा पाएगा। मोक्ष में जानावह आत्मा का स्वभाव है, पुद्गल उसे नीचे खींचता है, लेकिन आत्मा चेतन है इसलिए अंत में वही जीतेगा। पुद्गल में चेतन नहीं है, इसलिए उसमें कला नहीं होती और चेतन मतलब कला करके भी छूट जाता है। जिसे छूटना ही है उसे कोई बाँध नहीं सकता और जिसे बंधना ही है उसे कोई छुड़वा नहीं सकता! _ 'मोक्ष नहीं है।' ऐसा कह दिया तो फिर छूटेगा किस तरह?! अरे, मोक्ष नहीं है, लेकिन मोक्ष के दरवाज़े को हाथ लगा सकते हैं और अंदर के सभी महल दिखते हैं, दरवाज़े ट्रान्सपेरेन्ट हैं। इसलिए, अंदर का सभी कुछ दिख सकता है ! लेकिन इसने तो शोर मचाकर रख दिया कि, 'मोक्ष नहीं है, मोक्ष नहीं है।' लेकिन यह तुझे किसने बताया? तो कहते हैं, 'ये हमारे दादा गुरुओं ने बताया है।' लेकिन दादागुरु को देखने जाएँ तो होते ही नहीं हैं ! यह तो 'हवा से खपरैल खिसकी, उसे देखकर कुत्ता भौंका।' उसके जैसा है। तो कोई बाहर निकला होगा उसने शोर मचाकर रख दिया कि 'क्या है? क्या है?' तब दूसरा गप्प लगाता है कि 'चोर देखा' और उससे शोर-शराबा मच गया! ऐसा है ! है कुछ भी नहीं और झूठा भय और घबराहट! लेकिन क्या हो? इन लोगों को भस्मकग्रह का असर भोगना बाकी होगा, इसलिए ऐसा हुआ होगा न? लेकिन अब तो वह सब पूरा होनेवाला है, ऐसा तय ही है! जहाँ मेहनत, वहाँ मोक्ष होता होगा? ये सभी चतुर्गति के मार्ग मेहनतवाले मार्ग हैं। जिसे अत्यंत मेहनत करनी पड़ती है वह नर्कगति में जाता है, उससे कम मेहनत करता है वह देवगति में जाता है, उससे कम मेहनत करता है वह तिर्यंच में जाता है और बिल्कुल बिना मेहनतवाला मोक्ष का मार्ग है ! 'ज्ञानीपुरुष' से मिलने