________________ 440 आप्तवाणी-२ कि, 'हार्टअटेक आया है, तो दवाई दे।' तो वह क्या कहेगा कि, 'जा डॉक्टर के पास।' यह तो भगवान की बात को समझे नहीं और चुपड़ने की दवाई पी गए! फिर हो पाएगा क्या? मोक्ष खुद के पास ही है, आत्मा खुद ही मोक्ष स्वरूप है। यह मन तो तरह-तरह का दिखाता हैं, उसे मात्र ‘देखना और जानना' होता है। यह दिखाना तो मन का धर्म - मनोधर्म है और अपना धर्म 'देखने-जानने' का है, लेकिन यदि उसमें तन्मयाकार हो जाए, शादी संबंध हो जाए तो परेशान करता है। मोक्ष मतलब मन-वचन-काया से मुक्तपना। 'खुद का' स्वतंत्र सुख, जिस पर किसी के और खुद के मन-वचन-काया का असर नहीं पड़े! मन-वचन-काया का कैसा है? कि जब तक 'यह' दुकान है तब तक अपनी दुकान का माल दूसरी जगह जाएगा और दूसरों की दुकान का माल अपनी दुकान में आएगा-ऐसा है! भगवान ने कहा है कि, "मोक्ष के लायक 'चारित्र' तो आज कहीं भी ज़रा सा भी नहीं रहा है, देवगति के लायक चारित्र तो हैं। मोक्ष के लिए तो यदि 'भगवान की आज्ञा' में रहे, आत्मज्ञान होने के बाद वाला चारित्र, वह चारित्र मोक्ष देगा!" इस काल में मोक्ष है? प्रश्नकर्ता : इस काल में मोक्ष नहीं है, ऐसा जो कहते हैं, वह सच है? दादाश्री : भगवान का कहा हुआ वाक्य कभी भी गलत नहीं हो सकता, लेकिन महावीर भगवान ने क्या कहा है कि, 'इस काल में इस क्षेत्र से जीव मोक्ष में नहीं जा सकेगा,' उसे लोग उल्टा समझे। इसमें कुछ लोगों ने कहा है कि, 'मोक्ष नहीं है।' इसलिए उस तरफ जाना छोड़ दिया और लोग भी उस प्रवाह में खिंच गए! लेकिन प्रवाह में हमें भी खिंच जाना चाहिए, ऐसा किसने कहा? भगवान ने क्या कहा है कि, 'इस काल में इस क्षेत्र से एक लाख रुपये का चेक नहीं मिलता है, लेकिन निन्यानवे हज़ार, नौ सौ निन्यानवे रुपये और निन्यानवे (99,999.99) पैसों तक का