________________ निष्पक्षपाती मोक्षमार्ग दादाश्री : मोक्ष होता होगा या नहीं? प्रश्नकर्ता : हाँ, यह विश्वास तो है, इसलिए मार्ग भी होता होगा और उसके जानकार भी होते ही होंगे न ! दादाश्री : हाँ। 'हम' उसके जानकार हैं। यह सांताक्रुज का मार्ग बतानेवाले तो मिल जाएँगे, लेकिन मोक्ष का मार्ग तो बहुत सकड़ा और भूल-भुलैयावाला है, उसे बतानेवाला मिलना अति दुर्लभ है। वह यदि मिल जाए तो उस 'मोक्षदाता' से माँग ही लेना होता है न? दिज़ इज़ द ओन्ली केश बैंक इन द वर्ल्ड! हम एक घंटे में ही आपके हाथ में नक़द मोक्ष दे देते हैं। यहाँ कहाँ महीने भर तक श्रद्धा रखने को कहते हैं? 'श्रद्धा रख, श्रद्धा रख' ऐसा जो कहते हैं उन्हें तो हमें डाँट देना चाहिए कि 'हमें श्रद्धा आती नहीं है न! आप कुछ ऐसा बोलो कि जिससे हमें श्रद्धा आए!' लेकिन क्या करे? दुकान में माल हो तब देंगे न? क्रोध की दुकान में शांति की पुड़िया माँगने जाएँगे तो मिलेगी? प्रश्नकर्ता : नहीं मिलेगी। दादाश्री : भगवान ने क्या कहा है कि, 'मोक्ष तो एक चौथाई मील की ही दूरी पर है और देवगति करोड़ों मील दूर है, लेकिन निमित्त मिलना चाहिए, उसके बिना मोक्ष नहीं मिल सकता। जिनका मोक्ष हो चुका है वे ही मोक्ष दे सकते हैं। ये तो बीवी-बच्चों को छोड़कर गए और मानते हैं कि माया-ममता छूट गई। ना, तू जहाँ जाएगा वहाँ नई ममता लगा लेगा, ममता तो अंदर बैठी-बैठी बढ़ती रहती है। यह तो 'ज्ञानीपुरुष' का ही काम है, जैसे दवाई देना वह डॉक्टर का काम है वैसे! इस किरानावाले से पूछे