________________ भक्त-भक्ति-भगवान 435 के लिए? यदि लोगों से पूछे कि, 'सिर पर जो बाल हैं, वे किसने बनाए?' तो कहेंगे कि, 'मुझे मालूम नहीं।' डॉक्टर से कहें कि, 'गंजे हो गए हैं, क्या अब बाल वापस उगेंगे?' तब वह कहता है, 'नहीं, दिमाग़ में बहुत गर्मी चढ़ गई है, इसलिए अब नहीं उगेंगे।' बाल किस तरह उगते हैं, किस तरह झड़ जाते हैं, इतना भी भान नहीं है। हमने कहा है कि, साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स से उगते हैं। उसी तरह यह देह है, आँखें-वाँखें सभी साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स से हैं, ऊपर कोई बाप भी बनाने के लिए फ़ालतू नहीं है। 'बाप' तो, इन एवरी क्रीचर (जीव) वेदर विजिबल और इन्विज़िबल, आपके और मेरे बीच में माइक्रोस्कोप से भी नहीं दिखें वैसे असंख्य जीव हैं, उनमें भगवान विराजमान हैं ! उनकी हाज़िरी से ही सब चल रहा है, लेकिन वह ज्ञान से ही समझ में आ सकता है, बुद्धि से समझ में आ सके, वैसा नहीं है। वह तो जब 'ज्ञानीपुरुष' ज्ञान देते हैं, तो ही आत्मा के बारे में निःशंक हो जाता है! नहीं तो, ऐसी शंका रहा करती है कि आत्मा ऐसा होगा या वैसा होगा। भक्ति तो प्रेमदा भक्ति होनी चाहिए! हम आपसे कहें कि, 'आप में थोडी भी अक्ल नहीं है।' तब आपको क्या कहना चाहिए कि, 'दादा, जैसा हूँ वैसा आपका ही हूँ न!' कीर्तन भक्ति वीतरागों के तो जितने बखान करें, उतने कम हैं। उनके कीर्तन लोगों ने गाए ही नहीं, और जो गाए हैं उनके राग ठीक नहीं हैं। वीतरागों के कीर्तन यदि अच्छी तरह से गाए होते तो ये दु:ख नहीं होते। वीतराग तो बहुत समझदार थे! उनका माल तो बहुत ज़बरदस्त! वे तो कहते हैं, 'समकित से लेकर तीर्थंकरों के कीर्तन गाते रहो!' 'तो फिर साहब अपकीर्तन किसके करूँ? अभव्य हैं उनके?' नहीं, अपकीर्तन तो किसी के भी मत करना, क्योंकि मनुष्य का सामर्थ्य नहीं है, इसलिए ऐसा मत करना। अपकीर्तन क्यों कर रहा है? अपकीर्तन वीतरागों से दूर रखता है। यह तेरे बूते की बात नहीं है, बल्कि दोष में पड़ जाएगा। ये जो टेढ़े लोग हैं, उनका नाम भी मत लेना, उनके तो दूसरी तरफ से निकल जाना। तब