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________________ 434 आप्तवाणी-२ दादाश्री : वह ऊपर कौन से मुहल्ले में रहते हैं? उनका एड्रेस तो बताओ! प्रश्नकर्ता : ....... (निरुत्तर) दादाश्री : ऐसी बिना एड्रेस की भक्ति किस काम की? उन्हें देखा नहीं हो तो चलेगा, लेकिन एड्रेस तो चाहिए न? यह तो बिना एड्रेस की बात है! स्ट्रीट नंबर भी नहीं जानते?! यह ईश्वर विवाहित होगा या कुँवारा? और विवाहित हैं तो उनकी वहाँ माँ होंगी, बूढ़ी माँ होंगी! उनके वहाँ तो कोई मरेगा ही नहीं न? तो कितने परिवारजन होंगे? लेकिन वैसा नहीं है। इस जगत् की बात सत्य नहीं है। 'ज्ञानीपुरुष' की बात, यही सच है, 'ज्ञानीपुरुष' सच जानते हैं। द वर्ल्ड इज द पज़ल इटसेल्फ, इसे कोई बनाने नहीं गया, इटसेल्फ उत्पन्न हो गया है! सोडियम धातु को पानी में डालने से विस्फोट हो जाता है, इसे साइन्स से समझा जा सकता है, उसी तरह यह दुनिया साइन्स से उत्पन्न हुई है! उसी तरह ये रिश्ते भी साइन्स से उत्पन्न हुए हैं, लेकिन यह बात ज्ञान से समझ में आती है। ऑल दीज़ आर टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट्स ! विनाशी चीज़ भोगने की इच्छा-वह है मिथ्या दृष्टि और अविनाशी चीज़ भोगने की इच्छा-ये है सम्यक् दृष्टि / जहाँ दुःख की एक भी बूंद नहीं हो-वह है सम्यक् दृष्टि ! प्रश्नकर्ता : भगवान तो कण-कण में रहते हैं न? दादाश्री : भगवान सभी जगह होते तो ढूँढने की क्या ज़रूरत है? फिर जड़ और चेतन का भेद ही कहाँ रहा? यदि सभी जगह भगवान हों तो फिर संडास कहाँ जाए? सभी में भगवान होते तब तो फिर इस आलू में भी होते और तोरई में भी होते। शरीर में भगवान होते तब तो शरीर विनाशी है, लेकिन भगवान तो अविनाशी हैं। इन लोगों को इतना भी भान नहीं है कि इन मनुष्यों को या भैंस को कौन गढ़ता है! बड़े संत, त्यागी भी कहते हैं कि भगवान के अलावा और कौन गढ़ेगा? वह भगवान क्या फ़ालतू होगा कि भैंस के पेट में बैठकर बछड़े बनाएगा? तब फिर वे वहाँ पर कुम्हार को क्यों नहीं भेज देते गढ़ने
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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