________________ भक्त-भक्ति-भगवान 431 है, लेकिन अपराधवाला नहीं छूटता। जिसका बहुत तीव्र भारी अहंकार होता है, वह अपराध कर बैठता है। इसलिए हमें खुद को कहना पड़ेगा कि, 'भाई, तू तो पागल है, यों ही पावर लेकर चल रहा है। ये लोग तो नहीं जानते लेकिन मैं जानता हूँ कि तू कहाँ, कैसा है? तू तो घनचक्कर है।' यह तो अपने को उपाय करना पड़ेगा, प्लस और माइनस करना पड़ेगा। सिर्फ गुणा ही हो तो कहाँ तक पहुँचेंगे? इसलिए हमें भाग लगाना पड़ेगा। जोड़-बाकी नेचर के अधीन है जबकि गुणा-भाग मनुष्य के हाथ में है। इस अहंकार से सात से गुणा हो रहा हो तो सात से भाग लगा देना, ताकि नि:शेष हो जाए। प्रश्नकर्ता : जो अपराध हो चुका हो, वह कैसे धुल सकता है? दादाश्री : 'ज्ञानीपुरुष' के पास आँख में पानी आ जाए तो अपराध मिट जाते हैं। प्रश्नकर्ता : वह किसके अधीन है? दादाश्री : अधीन नहीं देखना है, वह सब निमित्ताधीन है। रोने से हल्कापन आ जाता है। प्रश्नकर्ता : अपराध करते समय बिल्कुल भी ख्याल नहीं आता, वह किसलिए? दादाश्री : वह बहुत भारी प्रपात जैसा है, इसलिए। नियम में पोल नहीं मारनी चाहिए ये महाराज लोग तीन डंडियाँ रखकर माला करते रहते हैं। कितने जन्म गुज़र गए फिर भी आप यह लकड़ी की माला घुमा रहे हो? क्या अंदर चेतन माला नहीं है? यह तो 'भाग मनका-मनका आया, भाग मनकामनका आया'-ऐसे करता रहता है! अरे, ऐसा क्यों करते हो? तब वह कहेगा कि, 'ऐसा तो हमारे गुरु भी करते थे, इसलिए हम भी ऐसा ही करते हैं।' किसीने ऐसा नियम लिया हो कि रोज़ चालीस माला करनी है और