________________ भक्त-भक्ति-भगवान 429 लिए ही है। जो व्यक्ति किसी भी चीज़ का भिखारी है तो उसका सत्संग मोक्ष के लिए काम का नहीं है। देवगति के लिए ऐसा सत्संग काम आएगा लेकिन मोक्ष के लिए तो, जो किसी भी चीज़ का भिखारी नहीं है, उसका सत्संग करना चाहिए। भगत के हिस्से में क्या आता है? घंटी बजानी और प्रसाद खाना। ये तो खुद भगवान के फोटो की भक्ति करता है, यह कैसा है? कि जिसकी भक्ति करता है, वैसा बन जाता है ! संगमरमर के पत्थर की भक्ति करे, तो संगमरमर जैसा बन जाता है और काले पत्थर की भक्ति करे तो काला पत्थर बन जाता है, फोटो की भक्ति करे तो फोटो जैसा बन जाता है और इन 'दादा' की भक्ति करे तो 'दादा' जैसा बन जाता है! भक्ति का स्वभाव कैसा है? जिस रूप की भक्ति करेगा, वैसा बन जाएगा। भक्ति, वह तो भगवान और भक्त का संबंध बताती है। जब तक भगवान हैं, तब तक चेले हैं, भगवान और भक्त भिन्न हैं। अपने यहाँ जो किया जाता हैं उसे भक्ति नहीं कहते, वह निदिध्यासन कहलाता है। निदिध्यासन भक्ति से उच्च माना जाता है। निदिध्यासन में एक रूप ही रहता है, एक रूप ही हो जाता है उस समय, जबकि भक्ति में तो कितने ही जन्मों तक भक्ति करता रहे, फिर भी ठिकाना नहीं पड़ता! इस कम्प्यूटर को भगवान मानकर उसे ढूँढने जाओगे तो सच्चे भगवान छट जाएँगे। भक्ति तो, जो अपने से ऊँचे हैं उन्हीं की कर न! उनके गुण सुने बिना भक्ति होगी ही नहीं। लेकिन ये जो करते हैं वह प्राकृत गुणों की ही भक्ति है, तो वहाँ तो चस्का नहीं लगा हो तो भक्ति कर ही नहीं सकता। चस्का लगे बिना भक्ति हो ही नहीं सकती। नाम, स्थापना और द्रव्य, इन तीन गुणाकारों से भक्ति होती है। कुछ लोग स्थापना भक्ति करते हैं, भगवान का फोटो रखते हैं और भक्ति करते हैं, वे और 'ज्ञानीपुरुष' की भक्ति यानी कि जब नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव वे चारों ही गुणाकार हों, तब होती है। प्रश्नकर्ता : भक्ति और श्रद्धा में फर्क है क्या? दादाश्री : भक्ति का मतलब तू क्या समझा? 'मैं खाता हूँ,' वह क्या भक्ति कहलाएगी?