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________________ 428 आप्तवाणी-२ फिर ढिढोरा पीटा दिया कि, 'रोज़ जो भक्त खाना खाने आते हैं, कल राजा उनका 'भक्त-तेल' निकालनेवाले हैं तो सभी ज़रूर आना।' तो दूसरे दिन दो ही लोग आए। खुद का तेल निकलवाने के लिए कौन आए? दो सच्चे भक्त थे वे आए। बहन, आपको मोक्ष चाहिए या और कुछ चाहिए? प्रश्नकर्ता : मोक्ष के बजाय तो भक्ति करने को मिले तो अच्छा। दादाश्री : आप अभी भगवान की भक्ति करती हो, तो क्या उन भगवान को पहचानती हो? वे भगवान कौन से मुहल्ले में रहते हैं? कितने लंबे होंगे? उनके कितने बच्चे हैं? उन्होंने माँ का बारहवाँ किया है या नहीं, वह आप जानती हो? प्रश्नकर्ता : भक्ति करने से ही साक्षात्कार होता है न? दादाश्री : अनंत जन्मों से आप हो, कौन से जन्म में आपने भक्ति नहीं की होगी? अनंत जन्मों से भगवान को पहचाने बिना परोक्ष भक्ति की है, उससे कुछ भी नहीं मिलता और यात्राओं में भटकना पड़ता है, तो क्या भगवान वहाँ पर बैठे हुए होंगे? पूरी दुनिया उलझी हुई है। साधु, सन्यासी सभी उलझे हुए हैं। ऐसे कितने ही लोग गलियों में भटकते रहते हैं, कोई हिमालय में, तो कोई जंगल में भटकता है, लेकिन भगवान तो ज्ञानी के पास ही हैं। अन्य कहीं भी जाओगे तो वहाँ गड़बड़-गड़बड़-गड़बड़ ही है। मनुष्य के जन्म में ज्ञानी के पास आत्मा नहीं जाना तो बाकी सभी जगह पर गड़बड़ ही है। आपको जो कुछ पूछना हो वह पूछना, यहाँ पर यह अंतिम स्टेशन की बात है। भक्ति और मुक्ति प्रश्नकर्ता : मुक्ति के लिए भक्ति करनी चाहिए? दादाश्री : भक्ति तो मुक्तिमार्ग के साधन दिलवा देती है। भक्ति करने से मुक्ति के साधन मिलते हैं। वीतराग की भक्ति सिर्फ मुक्ति के
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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