________________ 426 आप्तवाणी-२ का अभिनय करते हैं और बारात में जाएँ तो बाराती बन जाते हैं और स्मशान में जाएँ तो अर्थी को कंधा देनेवाले बन जाते हैं। फिर उस ड्रामे में ज़रा सी भी कमी नहीं रहती, एक्जेक्ट अभिनय होता है। जो ड्रामे में कच्चे पड़ जाएँ वे ज्ञानी नहीं होते। गाड़ी में टिकिट चैकर टिकिट माँगे तो वहाँ हम थोड़े ही कह सकेंगे कि, "हम 'ज्ञानीपुरुष' हैं, 'दादा भगवान' हैं?" वहाँ तो पैसेन्जर ही हैं और यदि टिकिट गिर गई हो तो चैकर से कहना पड़ेगा कि, 'भाई, टिकिट ली थी लेकिन गिर गई, तुझे जो जुर्माना लेना हो वह ले ले।' भक्त धुनी होते हैं। धुन शब्द ध्यानी में से बना है। ध्यानी का अपभ्रंश हो गया तो धुनी बन गया! एक ही तरफ का ध्यान, वह ध्यानी। एक ध्यान में पड़ जाए तो उसे धुन लग गई, कहा जाता है, वह धुनी बन जाता है। एक अवस्था उत्पन्न होने के बाद उसी में रहता है, उसे धुनी कहते हैं। धुनी तो, खुद के स्वरूप का होने योग्य है, उससे ध्याता, ध्येय और ध्यान एक हो जाते हैं। प्रश्नकर्ता : ये जिन्हें विम्ज़िकल कहते हैं, वे धुनी ही हैं क्या? दादाश्री : वे धुनी के सौतेले भाई हैं। धुनी को पैसे से मतलब नहीं होता। हमारे पास धुनी आए तो उसका काम ही हो जाए। धुनी को संसार में लोग सुखी नहीं होने देते, इधर-उधर से मारते रहते हैं। भक्तों को बेचारों को सुख नहीं मिलता, लोग उन्हें परेशान करते रहते हैं, भक्तों को लोगों से बहुत मार पड़ती है। कबीर जी ने, बेचारों ने बहुत बार लोगों की मार खाई हैं। एक बार दिल्ली में युवा दंपत्ति साथ में घूम रहे थे और बच्चे को गोदी में लेकर घूम रहे थे, तो कबीर जी को बहुत दया आई कि ये किस तरह जी रहे हैं? इसलिए वे एक ऊँची टेकरी पर चढ़ गए और ऊँची आवाज़ में गाने लगे, 'ऊँचा चढ़ पुकारियाँ, बूमत मारी बहुत, चेतनहारा चेतजो, सिर पे आई मोत।' सिर पर मौत आई है और इस बच्चे और बच्ची को बगल में डालकर कहाँ घूम रहे हो? तो बीवी और बीवी के पतिदेव और बाकी लोगों ने