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________________ 424 आप्तवाणी-२ प्रश्नकर्ता : दादा, ये भाई तो भगत आदमी है। दादाश्री : कब तक भगत रहना है? जन्मोजन्म तक भगत ही रहता है और यदि किसी जन्म में भूल खाई और भक्तों में भी अगर कोई कुसंग मिल गया तो? केन्टीन में ले जाएगा, और, वही फँसाव है! जब तक ज्ञानी नहीं मिलें, तब तक भक्ति माँगनी चाहिए और ज्ञानी मिल जाएँ तब उनसे मोक्ष माँग लेना चाहिए। ज्ञानी स्थायी हल ला देते हैं। भगत भगवान को किसलिए याद करते हैं? तब कहे, आत्मज्ञान के लिए। लेकिन आत्मज्ञान तो तेरा खुद का ही स्वरूप है, लेकिन उसका तुझे भान नहीं है न? जगत् में तो सब ओर 'तू ही, तू ही' गाते हैं, वे भगत और भगवान को जुदा मानते हैं। अरे, एक बार 'मैं....ही, मैं...ही' गा न! तो भी तेरा कल्याण हो जाएगा। 'तू ही, तू ही' गाएगा तो कब अंत आएगा? लेकिन लोग 'तू ही, तू ही' किसलिए गाते हैं? व्यग्रता में जो 'तू' था, वह अब सिर्फ 'तुझ में' एकाग्र हो गया है। इस प्रकार 'तू' गाता है, लेकिन यह 'तू ही' गाने से कुछ नहीं होगा। 'मैं ही' का काम होता है, 'तू ही' में 'त' और 'मैं' का भेद रहता है, इसलिए ठेठ तक भगत और भगवान दोनों जुदा ही रहते हैं, जबकि 'मैं ही' में अभेदता रहती है, 'खुद' ही परमात्मा स्वरूप हो जाता है! कुछ तत्वमसि' ऐसा गाते हैं, यानी कि 'वह मैं हूँ'। लेकिन 'वह' कौन, वह भगवान जाने! 'वह' का स्वरूप ही समझ में नहीं आया और 'तत्वमसि-तत्वमसि' गाता रहता है तो उससे कुछ भी नहीं होता। जब सभी ओर 'मैं ही, मैं ही' दिखाई देता है, तब काम होता है! भक्तों ने कहा है कि, 'सभी में भगवान को देख,' लेकिन वह साइकोलोजिकल इफेक्ट हैं। ऐसी आदत डाली हो कि 'सभी में भगवान देखने हैं,' तो दिखते हैं, लेकिन ज़रा छेड़ें तो क्रोध-मान-माया-लोभ खड़े हो जाते हैं। जैसी इन भक्तों में से किसीने एक बूंद भी प्राप्त नहीं की है, वैसा आप सभी महात्माओं ने प्राप्त किया है! यह ग़ज़ब का ज्ञान है! यह तो साइन्स है ! साइन्टिफिक तरीके से आत्मा प्राप्त किया, इसलिए सभी
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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