________________ भक्त-भक्ति-भगवान कृष्ण भगवान ने चार प्रकार के भक्त बताए हैं : अभक्तों के प्रकार तो अनेक हैं! इसलिए हम यहाँ भक्तों के ही प्रकार देखें : 1) आर्तभक्त - द:ख आएँ, तभी भगवान को याद करता है, सुख में याद नहीं करता। खुद के पैर में दुखे, तब 'हे भगवान! हे भगवान!' करता है, 'दया करो, दया करो' कहता है। तब भगवान समझ जाते हैं कि, 'यह तो दु:ख के मारे मुझे याद कर रहा है।' ऐसे भक्त जगह-जगह पर देखने को मिलते हैं। 2) अर्थार्थी भक्त - ये स्वार्थी भक्त हैं, अर्थात् मतलबी भक्त, 'मेरे यहाँ बेटे का जन्म होगा तो ऐसा करूँगा' कहता है, भगवान से माँगता है। अर्थार्थी का अर्थ नहीं जानते, इसीलिए वे कहते हैं कि, 'मैं अर्थार्थी हूँ।' 3) जिज्ञासु भक्त - जो भगवान के दर्शन करे, भगवान के दर्शन की लगनी लगे, वह जिज्ञासु भक्त। 4) ज्ञानी भक्त - वह तो एक 'मैं' खुद ही हूँ। भगवान ने कहा है कि, 'ज्ञानी ही मेरा प्रत्यक्ष आत्मा है।' वे तो खुद अपने पाप कर्मों का पुलिंदा बनाकर जला देते हैं और सामनेवाले के पापों का भी पुलिंदा बनाकर जला देते हैं ! वैसे 'ज्ञानीपुरुष' 'हम' खुद हैं ! इन चार भक्तों में से जिज्ञासु भक्त काम निकाल लेता है। इनके अलावा भक्त का कोई पाँचवा प्रकार नहीं है। अभक्त तो, अगर भगवान हाज़िर हो जाएँ तो उनका भी साग बनाकर खा जाएँ, वैसे हैं ! क्योंकि बहुत मिन्नतें वगैरह मानी हुई होती हैं, तो उनमें से अगर कोई एक भी पूरी नहीं होती तो फिर भगवान का साग बनाकर खा जाएँ, वैसे हैं!