SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 459
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 422 आप्तवाणी-२ साधन सबसे अच्छे हैं।' यह सब तब सोचा था, लेकिन 1958 में ज्ञान प्रकट हुआ तब से इसके प्रति बिल्कुल भी विचार नहीं आए। आज वीतराग धर्म के लिए पूरे वर्ल्ड में काम हो रहा है। एक जगह पर नहीं, पूरे वर्ल्ड में काम हो रहा है, ये सभी वीतराग धर्म को पुष्टि दे रहे हैं, और खुद का सत्यानाश कर रहे हैं! ये मंत्री हमसे पूछने आते हैं और कहते हैं कि, 'इस हिन्दुस्तान का सभी कुछ बिगड़ने को तत्पर है।' मैंने कहा, 'साहब, आपका घर बिगड़ जाएगा, देखना कहीं आपकी ये लड़कियाँ न भटक जाएँ।' क्योंकि साहब के वहाँ तीन गाड़ियाँ होती हैं, उसमें से एक को साहब लेकर चले और एक को सेठानी इधर लेकर चली और लड़कियाँ उधर जाएँगी, तहसनहस हो जाएगा, तेरा तहस-नहस हो जाएगा। इस हिन्दुस्तान का बिगाड़नेवाला तो कोई पैदा ही नहीं हुआ, यह हिन्दुस्तान तो वीतरागों का देश है, ऋषिमुनियों का देश है, इसका कोई नाम देनेवाला नहीं है। जिस देश में कृष्ण भगवान जैसे वासुदेव पैदा हुए, जिस देश में 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 वासुदेव, 9 प्रतिवासुदेव और 9 बलराम पैदा हुए हैं, वहाँ क्या कमी हो सकती है? क्रमिक मार्ग में नकल चल सकती है, लेकिन 'यह' अक्रम मार्ग है! अचानक ही दीया प्रकट हो गया है इसलिए तु तेरा दीया प्रज्वलित कर जा। फिर जितनी गाँठे हैं उन गाँठों को किस तरह से निकालना, वह मैं तुझे दिखाऊँगा, लेकिन पहले तू पुरुष बन जा, प्रकृति के रूप में तेरा कुछ भला नहीं होगा। मनुष्य किस रूप में है? जब तक स्वरूप का भान' नहीं हो जाता, तब तक वह प्रकृति के रूप में हैं और जो-जो क्रियाएँ की जाती हैं, वे सभी प्रकृति के नाच हैं। और प्रकृति नाचती है और खुद कहता है कि, 'मैंने किया।' इसे गर्व कहते हैं।
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy