________________ 420 आप्तवाणी-२ नहीं है। यदि वे क़बूल नहीं करते तो हम समझ जाते हैं कि यह उनकी आड़ाई है। वे यह जान-बूझकर कर रहे हैं और ऐसा तो करते ही हैं, व्यक्ति में अहंकार होता है और आड़ाई करना-वह तो उसका मूल स्वभाव है न? अब वीतराग मार्ग का उद्धार होने लगा है। वीतराग तो खुद वीतराग थे, लेकिन उनके मार्ग का उद्धार होगा न! बहुत दिनों तक, कब तक उस मार्ग पर धूल पड़ी रहेगी? सच्चा हीरा कभी न कभी बाहर निकले बिना रहता है क्या? कृष्ण भगवान ने भी कहा है, 'वीतराग मार्ग निर्भय मार्ग है, मोक्ष मार्ग है।' कृष्ण भगवान ने कितना सुंदर कहा है! जगत् में क्रांति काल बरते प्रश्नकर्ता : आज भारत की पूरी संस्कृति किस तरह से खत्म करनी, वह वेस्टर्न डिक्टेशन से चल रहा है। दादाश्री : संस्कृति का नाश करने चले हैं न वे, हमें जो मकान तोड़ना था न, ये लोग उसी को तोड़ रहे हैं, इसलिए हमें लेबरर्स नहीं मँगवाने पड़ेंगे। मैं कब से ही जान गया हूँ कि ये लेबरर्स बाहर से आ रहे हैं। जबकि हमें उन्हें एन्करेज नहीं करना है, लेकिन भीतर हमें समझ जाना है, कि ये तो मुफ्त में लेबरर्स मिल रहे हैं ! इस तरह पुराना सब गिर जाएगा, तभी नया रचा जा सकेगा! ये फॉरेनवाले कितने अधिक सुधर गए हैं(!) कि नींद की गोलियाँ खाएँ, तब उन्हें नींद आती है ! अरे, आपकी नींद कहाँ गई? उनसे तो हमारे यहाँ वाले अच्छे कि आराम से सो जाते हैं। आप अपने देश में पूरे वर्ल्ड का सोना और लक्ष्मी लेकर बैठे हो, फिर भी बीस-बीस गोलियाँ खाकर सोते हो! यह क्या है आपका? एक फॉरेन का साइन्टिस्ट हमें मिला था उससे हमने यह बात की। उसने पूछा कि, 'इसमें हमारी भूल कहाँ रह गई है?' तब मैंने कहा, 'यह जो आपका भौतिक विज्ञान है, वह अबव नॉर्मल का पोइजन हो चुका है, सब ज़हरीला हो चुका है। बिलो नॉर्मल इज़ द पोइजन, अबव नॉर्मल इज द पोइजन, नॉर्मेलिटी इज द रियल लाइफ।'