________________ 46] नमस्कार बालावबोध | गुजराती आश्चर्यनी वात सांभलि / तेणइ पद्मपुरि नगरि पद्मराजा, हंसी राणी, तेह तणइ रत्नवती नामि बेटी चउसठि कलाकुशल महारूप पात्र यौवन वय प्राप्त हुई / पितानि मनिं वरचिंता उपनी / अमात्यहूई कहई- एह कन्याहूइ गुणे करी अनुरूप योग्य वर किहां थिकु मिलशइ / महंतु कहइ-स्वामी ! म कर चिंता / एहनां भाग्य छइ ते स्वयमेव समानयोग मेलशइ / एकवार राजा आगलि एक नटवउ पुलिंदानइ वेषि नाचतु देखी कन्याहूई मूर्छा आवी जातिस्मरण ऊपर्नु / आपणु पाछिलु भव पुलिंदानु दीठउ / पूर्वभवनी भार्या रत्नवती प्रति अतिसानुरागथिकु वली पूछइ-कहु आधु किसिउं हूउं ? वटेवाहू कहइ-पछइ ते कन्यातणी प्रतिज्ञानी वात देसि विदेसि विस्तरी / अनेक राजाना कुमार ते कन्या परिणवानइ लोभई आवी आवी कूड़े जि कहइ / अम्हे पाछिलइ भवि पुलिंदा इता। पछइ कन्या कहइ-अहो जु तुम्हे पुलिंद इता तु कहउ तम्हे सिउं पुण्य कीधउं हूतउं जेणइ करी एवडी राज्यरिद्धि लाधी ? पेला ते वात न जाणइ, कूडा पडिआ। तहीअ लगइ ते कन्या पुरुषद्वेषिणी थई / ए पुरुष सघलाइ कूडा बोला जि हुइ / तेह भणी एह पुरुषतणुं मुख नहीं जोउं / इसिउं चीतवई स्त्रीइजिना वृंदमाहिं थिकी रह रहइ / तु अहो राजकुमर ! पुरुषमाहिं तूं रत्न छइ अनइ स्त्रीमाहिं तु ते कन्यारत्न / तुम्हे बिहुंहूइ जइ योग मिलइ तु अपार जडतुं हुइ / इसिउं सांभली कुमार हर्हिउ, आनंदिउ; सर्व अंगलग्न आभरण ऊतारी तेहहूई आपी विसर्जी आपणइ घरि आविउ / रत्नवतीहई मिलवाना उपाय चिंतवइ / तिसई नगरलोके मिली राजाहइ एकांतिं वीनवइ-स्वामी ! अझे किम करूं? ए राजसिंहकुमार नगरमाहिं जीणइ जीणइ सेरीइं सांचरइ तिहां तिहां आपणां बालकइ रोव्यतां मूंकी मूंकीनइ सौभाग्यना व्यामोहिआ स्त्रीना वृंद गमे गमे जोइवा धाइ / आमारां धरनां काजकाम सघलाइ सीदाइ छइ / तेह भणी स्वामी ! कुमर नगरमाहिं फिरतु वारु / राजाइं प्रतीहार पाइं कुमाररहई कहिराविउ / वच्छ ! तूं सदैव आवासमाहिं जि थिकु रहिजे, कला अभ्यसजे, बाहिरि हीडतां पुरुषनी कला विकला थाइ / ते सांभली कुमर दृहवाणउ / चितवइ ताति इम तुं कहाविउ, जु कांई माहरु उ(अ)पराध तातनइ मंनि प्रतिभासिउ। पछइ सुमित्रइ वातनु परमार्थ कहिउ / तू दूहवण फिटी पछइ कुमर कहइ-मित्र ! ए तातनी आज्ञा तु गाढी दुष्कर; सदैव घरमांहि पइसी रहिy; अनइ ते पद्मरायनी बेटीनु घणउं कूतिग छइ तु चालउ तेह देशांतर भणी जाईइ // यतः "दीसह विविहचरिअं जाणिज्जइ मुज्जण-दुजणविसेसो / अप्पाणं च कलिज्जइ हिडिजइ तेण पुहवीए॥" इसिउं विमासी बेहूजण खड्ा हाथि लेई तिहां भणी नीकल्या / ठामि ठामि अनेक आश्चर्य जोअता जोअता जाइ छइ / एकवार अरण्यमाहिं सूनइ देवकुलिं सूते कहिएक पुरुषनु करुणस्वर सांभलिऊ / कुमार ऊठी खड्ग हाथि लेई तेह भणी चालिउ / आगलि गिउ देखइ तु विकराल राक्षसई पुरुष एक कक्षामाहिं चांपिउ छड् / ते आक्रंद करइ छइ / कुमरई राक्षसहूइ कहिउं-ए बापडउ मूकि / ईणई ताहाँ सिउं विणासिउं ? पेलउ कहइ-ए मूंहहूइ वशि करतु इतु / मइ कहिउं