________________ नमस्कार बालावबोध [ गुजराती मानिउं / श्रावक अखंड पाछउ आविउ / राजाहुइ वृत्तान्त कहिउं / एकेक वीजोरो श्रवकरहइ व्यंतरउ सदैव आणी आपइ / श्रावक जइ राजारहइं आलइ / राजा हर्षिउ; नगरलोक हर्षिउ / सहूको जिनदास श्रावकनी प्रशंसा करइ / घणु काल धर्म पाली सुगति पहुतु // कथा 3 पूरी // ... ए इहलोकिं नउकारना फल ऊपरि त्रणि दृष्टान्त कह्या / हवई परलोक ऊपरि कहीइ छइ 3 दृष्टान्त // परलोकि नउकारमइ प्रभाविं राज्यपदवी पामोइ / जिम चंडपिंगल चौरइ पामी / अत्र कथा [4] वसंतपुर नगर; जितशत्रु राजा, भद्रा रानी। चंडपिंगलनामइं चौर छइ / तीणइँ चोरी करी करी नगरलोक ऊदेगिङ छइ / एकवार रायनु भंडार फाडी राणीनु अमूलिक हार चोरिउ / एक कलावती नामि तिहां गणिका छइ / काई श्राविका कांइ मिथ्यातिणि / तेहनइ विषइ ते चोर उलूधउ छ / ते हार लेई गणिकाइ आपिउ / इम करतां मयणतेरसिनु पर्व आविउं छई। सघली गणिका आपणा आपणा शृंगार पहिरी उद्यान वनमाहिं क्रीडा करिवा गई / कलावतीइ ते हार पहिरी तिहां आवी। तिसिं राणीनी दासीए ते हार तेहनइ कंठि दीठउ / ओलखिओ, जई राणीनइ कहिउं / राणीइ राजाहइ कहिउं / राजाई प्रतीहार पा[स]इ जोवरावी चंडपिंगल कलावतीना घरमाहिं थिकु साही महाविडंबनापूर्वक सूलिई दिवराविउ / कलावती ते वात जाणी तिहां गई। चिंतवई-अहो / माहरइ कीधइ एहरई इसी अवस्था आवी; तु आजतू एक पुरुष टाली बीजा सर्वपुरष नियम / एहरई नुंकार दिउं / पेली मुंकार देई / छेहडइ चोर मरी पट्टराणीनु बेटउ इउ / राजाइ महामोह लगइ महोत्सव करी पुरंदरकुमार नाम दीधउं / कलावतीइं दीहाडानी तकताक जोई जाणिउं सही ए तेह जि माहारो भरतार / राजानइ आवासि आवइ / पुरंदरकुमार बालकहई हुलावइ / जिवारइं रुदन करइ तिवारइं पाछिला भवनई नामि. बोलावइ / हे चंडपिंगल ! म रोइ / बालकरहई ते नाम सांभली जातिस्मरण ऊपर्नु / नुकारनु महिमा जाणिउ / पिता दिवंगत हुआ पूठि पुरंदरकुमार राजा इउ / कलावतीनउ उपगार जाणी तेह ऊपरि अत्यंत स्नेहथिकु निरंतर नुंकारनुं स्मरण करइ / राज्य अनइ धर्म पाली सुगति पहुतु // कथा चौथी 4 // वली परलोकि नउकारनई प्रभाविं महापापनु करणहार मरी देवतानी पदवी लहइ / जिम हुंडिक चोरि लाधी // अत्र कथा [5] मथुरा नगरी, शत्रुमर्दन राजा / तिहां हुंडिक चोर सदैव चोरी करइ। एकवार कहिएक व्यवहारीआनइ घरि खात्र पाडी घणउं सुवर्ण चोरिउं / कुटुंबने माणसे कलकल कीधउ / तलार धाया। सोना सहित चोर साहिउ / बांधी प्रभाति राजा आगलि आण्यो / राजाइ नगरमांहिं चहुटइ चहुटइ फेरवी अनेक प्रकारी विडम्बना करावी, बापडउ सूलीई दिवराविउ / नगरमांहि सघले उद्घोषणा करावी अहो लोको ! इसिउ फल देखी बीजउ को चोरी म करसिउ / अनइ एहनी चिंता कूणहिं न करिवी। पछइ सूली कम्हलि राउला चर मुंक्या / जि को एहनी चिंता करइ ते आवी कहिज्यो जिम तेहरह इं एह