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________________ विभाग ] नमस्कार स्वाध्याय अधिष्ठिउं मृतक ऊठिउं। शिवहई नउकारनइं प्रभाविइं करी पुहची शकइ नहीं / पछइ रीसाविई मृतकिं ऊपाडी त्रिदंडीआनुं मस्तक खगि करी छेदिउं / मंत्रनइ महिमाई करी तत्काल त्रिदंडीउ फीटी सोनातणुं पुरिसउ हूउ / शिवकुमार चमत्करिउ / रात्रि भणी तिवारइं ते सहू भुइं माहिं सातिउ / प्रभाति दमितारि राजाहूई सघल वृत्तांत कहीउ / राजानु आदेश पामी महोत्सवपूर्वक सोनानउ पुरसउ शिवकुमरि आपणइ धरि आंण्यो / लक्ष्मी अखूट हुई / दीहई पुरसाना मस्तकनइ कोठो टाली बीजां सधलां अंगोपांगनउ सोनउं कापी कापी वावरीइ / रात्रि वली दिव्यानुभावि तिस्यांइ जि थाइ / थोडे जि दिहाडे प्रौढ श्रीवंत व्यवहारिउ थिउ। अनुक्रमि गुरुनई योगिं धर्मना मर्म जाणी साव सुवर्णमय प्रासाद करावी, माहिं मणिमय प्रतिमा मंडावी, धर्म पाली सुगति पहुतु // कथा 2 // ____वली श्रीनउकारनइं प्रभावि मरणांत संकटइ थिकु छूटीइ / जिम जिनदास श्रावक छूटउ / अत्र कथा [3] क्षितिप्रतिष्ठित नगर, बल-राजा एकवार नवइ मेघि वूठइ नदी पूरि आवी। लोक जोवा ग्या / पाणीमार्हि तरतुं एक मेटिउं पाकुं बीजोरू दीठउं। तलारिमाहिं पइसी लीधउं / जई राजाहूई आप्यो / सुगंध मधुर सरस ते बीजपूर अस्वादिङ / हर्षिउ राजा पूछइ-ए किहां लाधउं ? तलार कहइ-स्वामी ! नदीना पूरमांहिं आवि तरतुं / राजा कहइ नदीनइ तटिं तर्टि जाउ, एह मूल जोउ / कहिनी वाडिथिकुं ए आविउं ? पेला जोता जोता तिहां घणीक लगइ ग्या / दीठी वाडी पइसवा लागा / तिसई दूकडे लोके कहिउं-अहो ! ईह म पइसु जि कोएकै एह फल फूल लेशइ ते तिहां ठाम जि रहइ, मरइ / पेला पाछा छई राजाहइं कहई / राजा रसलंपट थकु कहइ-जाउ तो नगरमाहिं सर्व मनुक्षना वारा करउ / रायना आदेश भणी तलारे सर्वनगरलोकनां नामनी चीठी लिखी एक घडामांहिं घाली प्रभाति कुमारिका पाशइ चीठी कढावीइ / जेहनी चीठी नीकलइ ते जीवतव्य निरास थई धूजतुं कांपतुं तीणइ वाडीइं जाइ। बीजउरुं नोडी नदीमाहिं वहितू मूकइ / तलार नगरद्वारि रही ते काढी लिई / पेलउ आपण' तिहां जि मरइ / नगर संघलं विषाद प्राप्त हुई। राजाना मनमाहिं नहीं। इम करतां एकवार जिनदास श्रावकनी चीठी नीसरी / पेलउ महानिर्भयपणइ घरि तथा देहरइ देवपूजा करी, सर्व कुटुंब खमावी, सागारि अणसण ऊचरी वनभणी पुहतु / ऊंचई सादिं नुकार कहितु जि वनमांहि पइठउ वननइं अधिष्ठायकिं व्यंतरई नउकार सांभलिउ चीतवइए अक्षर कहांइ आगइं सांभल्या छई / ज्ञाननु उपयोग देई पाछलिउ भव जोइ देखइ तु, सिडंपछलई भवि मई दीक्षा लेई विराधी तेह भणी मरी वितर थिउ / अहा जीणइं दीक्षाइं एकइ दीहाडउ सूधी पालीइं इतइ वैमानिक देवतानी पदवी लाभइ; ते दीक्षा प्रमाद लगइ ते मि हारी; अहो !-इम पश्चात्ताप धरतु आवी जिनदास श्रावकहूइ प्रत्यक्ष हूउ। बे हाथ जोडी आगलि ऊभु रहिउ / पगि लागी कहइ-मूहहूइ धर्म बूझवि उ, तू माहरइ गुरः कांई वर मागि / श्रावक कहइ-चर देसि तु सर्व जीव मारिवा नियम लिइ; अनइ स्थानकि जि बइठा दिन प्रति एक बीजउरई आणी आपवउ / व्यंतरह
SR No.023548
Book TitleNamaskar Swadhyay Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1980
Total Pages370
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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