________________ / विभाग ] नमस्कार स्वाध्याय [94-12] श्रीलक्ष्मीकीर्ति रचित नवकारफलगीत प्रह समइ लेइस्युं अरहंत नाम, सिद्ध आचारिज गुण अभिराम, सिरि उवझाय सुहामणा, साधु सहूनइ करुं जी प्रणाम / गायस्युं गुण नवकारना, पंचपरमेट्ठि छइ सकल सुखधाम, पामियइ परमपद संपदा, राति-दिन गाइयइ गुण अभिराम-कइ // 1 // __ भवियण मन सुधि ध्यायइ / सुवचन आपिज्यो सारदामाय, मुगुरु तणउ मइ लाउ सुपसाय, गुरु सुप्रसन्न सवे संपज्जइ, मनतणी उगति मत आणिज्यो काय / सुगुरु कहइ तिम कीजियइ, सजल जलद जिमि पंक पुलाय, पाप जायइ पुण्य संपज्जइ, वंछित बोल सहु एहथी थाय-कइ // 2 // भवियण मन सुधि ध्यायइ / चवद पूरव जिनसासण सार, तेहमांहि पंच परमिट्ट अधिकार, श्रीजिनवर मुखि उपदिसइ, अनंत चउवीसितणउ नवकार / एहनी आदि नवि को लहइ, सकल सुखसंपदातणउ अवतार, सोलह रोग अलगा पुलई, श्रीश्रीपाल नरिंद संभारि-कइ // 3 // भवियण मन सुधि ध्यायइ। कागल कोइ करइ आसमान, सरव वणराइनी लेखनी आणि, समुद्र जल सरह(व) जउ मसि करइ, सुरगुरु सइमुख करइ गुणगान / (प्रति-परिचय) आ गीतनी बे हस्तलिखित प्रतिओ श्रीअभय जैन ग्रंथालय, बिकानेर, नं. 1227 बे पत्रनी मळी हती, ते उपरथी संपादन करीने अहीं आपवामां आव्यु छ / कर्ताए पोतानुं नाम स्तवननी अंतिम कडीमां लक्ष्मीकीर्ति बताव्युं छे। तेओ सं० 1745 मां धर्मोपदेशवृत्ति, उत्तराध्ययनवृत्ति अने कल्पसूत्रवृत्ति ( कल्पद्रुमकलिका )ना रचनार खरतरगच्छीय श्रीलक्ष्मीवल्लभना गुरु हता। ___ आ कृतिमां कर्ताए नमस्कारना फळोनां दृष्टांतोनुं सूचन करी माहात्म्य गायुं छे /