________________ विभाग ] नमस्कार स्वाध्याय [93-11] श्रीपद्मराज रचित श्रीनवकारस्तवन / ( नवकार देशीकी चाल ) श्रीनवकार जपो मन रंगे, श्रीजिनशासन सार री माई ! / सर्व मंगलमांहे पहलो मंगल, जपतां जयजयकार री माई ! // 1 // पहिलो पद त्रिभुवन-जन-पूजित, प्रणभु श्रीअरिहंत री माई ! / अष्टकरम वि(व)रजित बीजै पद, ध्याउं मैं सिद्ध अनंत री माई ! // 2 // आचारिज तीजै पद समरूं, गुण छत्तीस निधान री माई ! / चोथे पद उवज्झाय जपीजे, सूत्र सिद्धांत सुजान री माई ! // 3 // सर्व साधु पंचम पद प्रणमुं पंच महाव्रत धार री माई ! / नव पद अष्ट यहां छे संपद, अडसट्ट वरण संभार री माई ! // 4 // सात इहां गुरु अक्षर एहमें, एक अक्षर उच्चार री माई ! / सात सागरना पातिक जावे, पद पच्चास विचार री माई ! // 5 // संपूर्ण प्रणसै ये सागरना, पाप पलावे दूर री माई / इह भव क्षेम कुशल सुख संपदा, परभव ऋद्धि भरपूर री माई ! // 6 // (प्रति-परिचय) आ 'स्तवनावली' (प्रका० कलकत्ता) पुस्तकमांथी लेवामां आव्यु छ / आ कृतिना कर्ता उपा० श्रीपद्मराज गणि छे, एम अंतिम कडी उपरथी जणाय छे / देओ खरतरगच्छोय महोपाध्याय श्रीपुण्यसागर गणिना शिष्य हता / तेमणे अनेक स्तवनो, गातो, सज्झायोनी रचना करी छे, केटलाक रास पण रच्या छ / तेओ सं० १६२८मां विद्यमान हता। विशेष हकीकत माटे जूओ 'श्रीभावारिवारणपादपूर्त्यादिस्तोत्रसंग्रह' (प्रका० श्रीहिंदी जैनागमप्रकाशकसुमति कार्यालय, कोटा) अने तेनी प्रस्तावना। तेमना गुरुनी हकीकत पण तेमां आपवामां आवी छ / आ स्तवनमां पंचपरमेष्ठी पदोनो महिमा बताव्यो छे। नमस्कारनां पदो, संपदा, गुरु अक्षर वगेरे विगतो सूचवी छ /