________________ विभाग नमस्कार स्वाध्याय [92-10] श्रीविजयभद्र रचित . नवकारमाहात्म्य / पढो मंत्र नवकार, तापते जरो निवार, पढो मंत्र नवकार, दुःख-दालिद्र टारै / पढो मंत्र नवकार, हुवै कायर नर सूरा, पढो मंत्र नवकार, भंडार रहे भरपूरा / पढो मंत्र नवकार, मोक्ष मारग निहालै, जपिये मंत्र श्रीजिनवर तणो दिन दिन जस अधिको वधै // 1 // ( नवकार मंत्र पढयां पछै प्राणी कांई पढा ? ) पहिलो मंगलिक कहुं हिवै एह, उत्तम टालै सयल संदेह / अरिहंत अरि जेहने नहि कोय, सो सरणो स्वामी मुझ होय // 1 // मंगलिक बीजो मनमें धरो, लोकमांहि छे उत्तम खरो। सिद्ध गया जे सिद्ध अनन्त, सो सा(स)रणो स्वामी हिये धरन्त // 2 // मंगलिक बोलु हिवै तिरती, लोकमांहि छे उत्तम यति / साधु सरण भवियण अणुसरो, जिम भव-सायर दुत्तर तरो // 3 // (प्रति-परिचय) आ कृति स्तवनसंग्रहमांथी लेवामां आवी छ / आ कृतिना कर्ता विजयभद्र मुंनि होवार्नु स्तवननी अंतिम कडी उपरथी सूचित थाय छ / तेओ आगमगच्छीय हेमविमलसूरिना शिष्य श्रीलावण्यरत्नना शिष्य हता / तेमणे 'कमलावतिरासचरित्र' अने 'कमलावतीरास' पंदरमी शताब्दीमां रच्या होवानुं जाणवा मळे छ / ___आ स्तवनमां नवकारमंत्र अने चार शरणानो महिमा तेमणे वर्णव्यो छे /