________________ 22 ] श्रीपञ्चपरमेष्ठि-गीत , [88-6] उपा० श्रीसमयसुंदर रचित श्रीपश्चपरमेष्ठि-गीत / ( राग-प्रभाति ) जपउ पंचपरमेट्टि परभाति जापं / हरइ दुरि शोक संताप पापं // 1 // जपउ०। अठसहि अक्षर गुरु सप्तमानं / सुख संपदा अष्ट नवपद निधानं // 2 // जपउ० / महामंत्र ए चउद पूरव सारं / भण्यउ भगवतीसूत्र धुरि तत्वसारं // 3 // जपउ० / जपइ लाख नवकार जे एकचित्तं / लहइ ते तीर्थकरपद पवित्तं // 4 // जपउ० / (प्रति-परिचय ) 88-89 छटा-सातमा नंबरनी बंने कृतिओ 'समयसुंदर-कृतिकुसुमांजलि' प्रका० श्रीअभयजैन ग्रंथमाला, पुष्पः 15, नाहटा बधर्स, 4 जगमोहन मल्लिन स्ट्रीट, कलकत्ता ७-थी प्रकाशित ग्रंथना पृष्ठः 221, अने पृष्ठः 219 परथी उतारी अहीं प्रगट करी छे / बने कृतिओना कर्ता सुप्रसिद्ध उपा० श्री. समयसुंदर गणिवर्य छ / तेओ साचोरनिवासी श्रेष्ठी रूपशीना पुत्र हता। तेमनी मातानुं नाम लीलादे हतुं / तेमणे उपा० श्रीसकलचंद्रजी पासे दीक्षा लीधो अने सं. १६४९मां तेमने लाहोरमां उपाध्याय पदवी आपवामां आवी / तेमणे जैन आगमोनो अभ्यास करी प्रौढ पांडित्य मेळव्यु हतुं / तेओ समर्थ टीकाकार, संग्रहकार तथा शब्दशास्त्र अने छंदःशास्त्र वगेरे अनेक शास्त्रोमां निष्णात हता / तेमणे समाद अकबरनी समक्ष एक पद 'राजानो ददते सौख्यम् 'ना आठ लाख अर्थो करी पोतानी व्युत्पन्न प्रतिभाथी सम्राट् अने जनताने आश्चर्यमुग्ध बनावी दीधा हृता / तेमणे अनेक ग्रंथोनी रचना करी छ / केटलाक ग्रंथो प्रसिद्ध थया छ / तेमनी केटलीक गुजराती कृतिओनो संग्रह उपर्युक्त 'समयसुंदर-कृतिकुसुमांजलि' नामे पुस्तकमां प्रगट थयो छ / __बने नानी कृतिओ पैकी पहली कृतिमां पंचपरमेष्ठिी नमस्कारनो महिमा वर्णव्यो छे ज्यारे बीजी कृतिमां अरिहंतनुं माहात्म्य बताव्युं छे /